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१. अनित्य भावना
वपुरिवपुरिदं विदभ्रलीलापरिचितमप्यतिभङ्गरं नराणाम् । तदतिभिदुरयौवनाविनीतम्, भवति कथं विदुषां महोदयाय ॥९॥ पुष्पिताग्रा
अर्थ :- चंचल बादल के विलास की तरह यह मनुष्य देह क्षणभंगुर है। यह शरीर यौवन के कारण वज्रवत् अकड़ चुका है। ऐसा शरीर विद्वज्जन के महान उदय के लिए कैसे हो सकता है ? ॥९॥ आयुर्वायुतरत्तरङ्गतरलं लग्नापदः संपदः, सर्वेपीन्द्रियगोचराश्च चटुलाः संध्याभ्ररागादिवत् । मित्रस्त्रीस्वजनादिसङ्गमसुखं स्वप्जेन्द्रजालोपमं, तत्कि वस्तु भवे भवे-दिह मुदामालम्बनं यत्सताम् ॥१०॥
शार्दूलविक्रीडितम्
शांत-सुधारस