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________________ अर्थ :- उसके ऊपर ब्रह्मदेवलोक तक पाँच राजलोकप्रमाण का भाग लोकपुरुष के विस्तृत दो हाथों की कोहनी समान है तथा एक राजलोक प्रमाण विस्तृत लोक के अन्त भाग में सिद्धशिला के प्रकाश से सुशोभित उसका मुकुट है ॥१४३।। यो वैशाखस्थानकस्थायिपादः, श्रोणीदेशे न्यस्त-हस्त-द्वयश्च । कालेऽनादौ शश्वदूर्ध्वंमत्वाद्, बिभ्राणोऽपि श्रान्तमुद्रामखिन्नः ॥१४४ ॥ अर्थ :- लोकपुरुष की स्थिति इस प्रकार है-वह समान रूप से फैलाए हुए पैर वाला, जिसके दोनों हाथ कटिप्रदेश पर टिके हुए हैं और अनादिकाल से जो ऊर्ध्वमुख किए, श्रान्त मुद्रा को धारण करके अखिन्न रूप से खड़ा है ॥१४४॥ सोऽयं ज्ञेयः पूरुषो लोकनामा, षद्रव्यात्माऽकृत्रिमोऽनाद्यनन्तः । धर्माधर्माकाशकालात्मसंज्ञैद्रव्यैः पूर्णः सर्वतः पुद्गलैश्च ॥१४५ ॥ अर्थ :- यह लोक-नामधारी 'लोक पुरुष' षड्द्रव्यात्मक, अनादि-अनन्त स्थिति वाला तथा अकृत्रिम है और धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, काल, जीवास्तिकाय तथा पुद्गलास्तिकाय से पूर्ण रूप से व्याप्त है ॥१४५॥ शांत-सुधारस ५८
SR No.034149
Book TitleShant Sudharas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages96
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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