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________________ १०. धर्म भावना दानं च शीलं च तपश्च भावो, धर्मश्चतुर्धा जिनबान्धवेन । निरूपितो यो जगतां हिताय, स मानसे मे रमतामजस्त्रम् ॥१२५ ॥ उपजाति अर्थ :- जिनेश्वर बन्धुओं ने जगत् के हित के लिए दान, शील, तप और भाव स्वरूप चार प्रकार के धर्म बतलाये हैं, वह (धर्म) मेरे मन में सदा रमण करे ॥१२५।। सत्य-क्षमा-मार्दव-शौच-सङ्गत्यागाऽऽर्जव-ब्रह्म-विमुक्तियुक्तः । यः संयमः किं च तपोऽवगूढश्चारित्रधर्मो दशधाऽयमुक्तः ॥१२६॥ इन्द्रवज्रा अर्थ :- सत्य, क्षमा, मार्दव, शौच, संगत्याग (अपरिग्रह), आर्जव, ब्रह्मचर्य, विमुक्ति (लोभत्याग), संयम और तप रूप दस प्रकार का चारित्र-धर्म कहा गया है ॥१२६।। यस्य प्रभावादिह पुष्पदन्तौ, विश्वोपकाराय सदोदयेते । ग्रीष्मोष्मभीष्मामुदितस्तडित्वान्, काले समाश्वासयति क्षितिं च ॥ १२७ ॥ इन्द्रवज्रा शांत-सुधारस ५०
SR No.034149
Book TitleShant Sudharas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages96
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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