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________________ अर्थ :- मूढ़ प्राणी बारम्बार स्नान करके मल से युक्त इस शरीर को शुद्ध जल से साफ करता है, उसके बाद उस पर चन्दन का लेप करता है और उसके बाद 'हम मल से मुक्त हो गए' इस प्रकार प्रीति का आश्रय करता है । किन्तु वह कभी शुद्ध नहीं होता है, क्या कचरे के ढेर को किसी प्रकार से शुद्ध किया जा सकता है ? ॥७२॥ कर्पूरादिभिरर्चितोऽपि लशुनो नो गाहते सौरभ, नाजन्मोऽपकृतोऽपि हन्त पिशुनः सौजन्यमालम्बते । देहोऽप्येष तथा जहाति न नृणां स्वाभाविकीं विस्रतां, नाभ्यक्तोऽपि विभूषितोऽपि बहुधा पुष्टोऽपि विश्वस्यते ॥७३॥ शार्दूलविक्रीडित अर्थ :- कर्पूर आदि सुगन्धित पदार्थों से वासित करने पर भी लहसुन कभी सुगंध को ग्रहण नहीं करता है । जीवन पर्यन्त नीच व्यक्ति पर कितना ही उपकार किया जाय तो भी उसमें सज्जनता नहीं आती है, इसी प्रकार मनुष्य का देह भी अपनी स्वाभाविक दुर्गन्ध को नहीं छोड़ता है । इस देह की कितनी ही सेवा की जाय, इस देह को कितने ही आभूषणों से विभूषित किया जाय, इस देह को कितना ही पुष्ट किया जाय, फिर भी इस पर विश्वास नहीं किया जा सकता है ||७३ || शांत-सुधारस ३१
SR No.034149
Book TitleShant Sudharas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages96
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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