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________________ शब्दार्थ : मार्ग में चलते समय गाड़ी के जुड़े जितने फासले तक ( चार हाथ प्रमाण क्षेत्र के अंदर ) दृष्टि रखने वाले, कदम-कदम पर आँखों से भूमि का अच्छी तरह अवलोकन करने वाले तथा शब्दादि विषयों से रहित स्थिर मन वाले होने से धर्मध्यान में ही रहने वाले मुनि इर्यासमिति- पालक कहलाते हैं ||२९६ ॥ , कज्जे भाइ भासं अणवज्जमकारणे न भासइ य । विगहविसुत्तियपरिवज्जिओ, य जइ भासणासमिओ ॥ २९७॥ शब्दार्थ : मुनिराज काम पड़ने पर उपदेश, पठनपाठनादि विशेष काम पड़ने पर निरवद्य भाषा बोलते हैं, बिना कारण वे नहीं बोलते । चार विकथाएँ और संयम की विराधना के कारणभूत विरुद्ध वचन नहीं बोलते। ऐसे दुर्वचनों का वे चिन्तन भी नहीं करते । ऐसे मुनि भाषासमिति बोलने में यतनाशील (सावधान) कहलाते हैं ॥ २९७ ॥ बायालमेसणाओ, भोयणदोसे य पंच सोहेइ । सो एसणाइसमिओ, आजीवी अन्नहा होइ ॥ २९८ ॥ शब्दार्थ : जो बयालीस प्रकार के एषणा संबंधी आहारभोजन करने के दोषों दोष तथा संयोग आदि पाँच प्रकार के से बचकर शुद्ध आहार करता है; वह साधु एषणासमितिवान (आहार में उपयोग वाला) कहलाता है । इससे विपरीत जो अशुद्ध और दोष युक्त आहार लेता है, वह उपदेशमाला ११०
SR No.034148
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmdas Gani
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages216
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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