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________________ आर्ष विश्व आचार्य कल्याणबोधि जैन धर्म और भगवान महावीरस्वामी जैन धर्म यह एक स्वतन्त्र एवं पूर्णतया मौलिक धर्म है । जिसका प्राच्यतम काल में अन्य धर्मोने भी आदर किया था । इस बात का सबलतम प्रमाण वेदों व पुराणों में प्राप्त जैन धर्म संबंधित गौरवपूर्ण उल्लेख है । जैन धर्म के अनुसार एक विराट कलमान जिसे उत्सर्पिणी व अवसर्पिणी कहा जाता है, उस में २४ तीर्थंकर होते है । भगवान महावीरस्वामी २४ वे तीर्थंकर थे । आज तक अनंत २४ तीर्थंकर हो चूके । ऋग्वेद में प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव का सम्मान के साथ उल्लेख व वर्णन किया गया है | भगवान महावीरस्वामी के माता-पिता त्रिशला रानी व सिद्धार्थ राजा थे । जो २३वे तीर्थंकर पार्श्वनाथ की परम्परा के अनुयायी थे । इस तरह अनादि काल से प्रवाहित जैन धर्म भगवान श्रीमहावीरस्वामी के पूर्व भी अखण्ड रूप से प्रचलित था । भगवान श्रीमहावीरस्वामी एक राजकुमार होते हुए भी अत्यंत विरागी, गुणवान एवं करुणा के धारक थे । समस्त विश्व को सर्व दुःखो से मुक्त करने की पवित्र भावना से उन्होंने ३० वर्ष की युवा वय में राज्यसुख का त्याग किया, पूर्णतया अहिंसामय निष्पाप जीवन की प्रतिज्ञास्वरूप दीक्षा का स्वीकार किया और अत्यंत दुष्कर साधना का प्रारम्भ किया । विश्व का कल्याण वही व्यक्ति कर सकती है, जो स्वयं पूर्ण हो । भगवान महावीरस्वामी की कठिन आत्मसाधना का आधार उनकी विश्वोपकार की भावना थी। उनकी साधना लगातार साडे बारह साल तक चलती रही। जिस के दौरान वे कभी भी लेटकर सोये तो नहीं, बैठे तक नहीं । वे दिन-रात कायोत्सर्ग (एक विशिष्ट ध्यानयोग) में मग्न रहे । अज्ञानवश कइ लोगों ने एवं पशु-पक्षी आदि ने उनको बेहद सताया, अनेकशः उनके प्राण लेने की कोशिश की गई। प्रबल शक्ति होने पर भी भगवान महावीरस्वामी ने उन सर्व कष्टों को न केवल समभाव से सहन किया, पर उन दुष्टों के प्रति भी पूर्ण करुणा धारण की । भगवान महावीरस्वामी की इसी करुणामय दृष्टि से अनेक दुर्जन भी सज्जन एवं महान बन गये । साडे बारह साल के इस विराट साधनाकाल में प्रभु ने केवल ३४९ दिन ही भोजन लिया था । उस के अतिरिक्त सर्व उपवास किये थे, वे भी निर्जल । अर्थात् कुल ३४९ दिन के अतिरिक्त प्रभु ने एक भी दिन न अन्न का दाना भी लिया था, न पानी का बुंद भी । ९
SR No.034125
Book TitleArsh Vishva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyam
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages151
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size1 MB
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