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________________ है ही, समाज के देश के एवं विश्व के प्रत्येक जीव के हित में है। धर्मोपनिषद् का हार्द भी यही है, कि जो चीज प्रत्येक जीव के हित में नहीं है, वह चीज व्यक्ति के हित में भी नहीं है। व्यक्ति का हित वही चीज कर सकती है, जिस चीज से समाज का शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य बना रहे, जिसमें देशद्रोह का अंश भी न हो, और जिससे विश्व के किसी भी जीव को कोई चोट न पहुँचती हो । जो चीज प्रत्येक जीव का | धर्मोपनिषद् के कर्ता कोई एक मनीषी हित नहीं करती, वह | नहीं है। यह एक मननीय संग्रह ग्रंथ है। जिसमें चीज व्यक्ति का हित भी | वेदों, पुराणों, आगमों, उपनिषदों, गीता, महाभारत, चाणक्यसत्र, त्रिपिटक, ग्रंथसाहिब. संहिता व नहीं करती। कबीरवचन से लेकर कुरान व बाईबल तक के धर्मशास्त्रो के संदर्भो को विषयानुसार प्रस्तुत किये गये है। संस्कृत, पाली, उर्दु आदि भाषा के इन संदर्भो को सब समज सके, उसके लिये प्रत्येक संदर्भ के साथ साथ ही उसका सरल हिंदी एवं इंग्लीश अनुवाद भी दिया गया है । भारत के एवं विश्व के अन्य देशों के भी सत्ताधीश तथा शिक्षामन्त्री यदि वास्तव में लोककल्याण करना चाहते है, तो उन्हें नर्सरी से लेकर कोलेज तक समग्र शिक्षा में धर्मोपनिषद को पाठ्यपुस्तक के रूप में स्थान देना चाहिये। हर साल दशवी व बारहवी की परीक्षायें आती है और विद्यार्थीओं में डिप्रेशन से लेकर आत्महत्या तक की अनेक घटनायें बनती है । परिणाम के दिनों पर अनेकत्र १६/ १८ साल के लड़के व लड़कीयों की स्मशानयात्रा नीकलती है। थोड़ी चहल-पहल, थोड़ा शोर, कुछ विचारणाये और फिर वही रफतार । परीक्षा-पद्धति को कैसे सरल बनाना उसकी तरह तरह की मंत्रणायें होती है, किन्तु परिस्थिति के मूल में जाने की सोच किसे आती बारहवी का एक छात्र परिणाम के दिन प्रातः भयानक डिप्रेशन का शिकार हो गया । कल्पनाओं के प्रवाह में आकर उसने आत्महत्या कर ली । परिवार के उपर मानों बीजली गिरी। करुण रुदन से सारी सोसायटी द्रवित हो गयी। शाम को परिवार के सदस्य स्मशान से घर वापस आये, तब घर पर कोई परिणाम की जानकारी दे गया था। आत्महत्या करनेवाले उस छात्र को ९१% आये थे ।
SR No.034125
Book TitleArsh Vishva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyam
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages151
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size1 MB
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