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________________ आवृत्तियाँ भी हो चुकी है। पश्चिमी विद्वद्वंद इस कथा की अस्मिता पर आफरीन है, और हमारी स्थिति...घर की मूर्गी... चलो, सब ले गये - आप रह गये - इस स्थिति से बाहर निकले...आत्मार्थी बने...आत्मकथा के अनजानपन का यह कलंक मिटा दे...बहुश्रुत गुरुभगवंत का शरण ले..इस कथा का रसास्वाद ले, और कृतार्थ बने । परम तारक सर्वज्ञवचन के विरुद्ध लिखा हो, तो क्षमायाचना करता हूँ। अवशेष दूर हो जाये, तो शिला ही शिल्प है । दोष दूर हो जाये, तो आत्मा ही परमात्मा है। जीवन का सार्थक्य सर्जन में नहीं, विसर्जन में है। उस स्रोत से तुझे कभी तृप्ति नहीं मिलेगी, जो तेरी भीतर से नही निकला है। विश्व की एक अद्भुत कृति का १००८ वा जन्मदिन
SR No.034125
Book TitleArsh Vishva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyam
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages151
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size1 MB
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