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________________ दोषो का विसर्जन ही दुःखो का विसर्जन है । इस के सिवा दुःखमुक्ति का ओर कोइ उपाय नहीं है । आगमो में भी यही बात की गई है रागस्स दोसस्स य संखएण, एगंतसोक्खं समुवेइ मोक्खं ॥ कंटकी वृक्ष से प्रेम करके काँटो की फरियाद करनी व्यर्थ है, उसी तरह दोषो के साथ मित्रता करके दुःखो की फरियाद करनी भी व्यर्थ है | आगम में कहा है - जुद्धारिहं खलु दुल्लहं । अतिदुर्लभ इस मनुष्यदेह का साफल्य अंतर्युद्ध करने में है, परम पराक्रम से दोषो को पराजित करके ज्वलंत विजय प्राप्त करने में है । - 'उपमिति' इसी तत्त्व को रोचक कथा द्वारा प्रस्तुत करती है । करीब १६००० श्लोक प्रमाण यह ग्रंथ आठ प्रस्तावो में विभक्त है । एक एक प्रस्ताव आता जाता है, एक एक घटना का मानो जीवंत प्रसारण होता जाता है, और संसार का पर्दाफाश होता जाता है । मनोमंथन को अभिनव अभिनव आलंबन मिलता जाता है । हिंसा और क्रोध से हुइ नंदिवर्धन राजकुमार की दुर्दशा... अहंकार और असत्य से रिपुदारण राजा ने प्राप्त किया हुआ कटु फल....चोरी और छल से निर्मित वामदेव की दर्दपूर्ण कथा... लोभ और मैथुन से धनशेखर की बरबादी... महामोह और परिग्रह से घनवाहन राजा का सत्यानाश । I - प्रतिक्षण उत्सुकतादायक कथा चलती रहती है, और पर्दे दूर होते रहते है ... एक के बाद एक... वाचक प्रतीति करते है यह तो मेरी ही बात... मेरी ही कथा... मैं ही नायक...मैं ही खलनायक..... दुर्भाग्य यही, कि आज तक इसे नहीं जाना । सौभाग्य यही, आज यह पर्दाफाश हुआ । योगशास्त्र में कहा है आत्माऽज्ञानभवं दुःखं-मात्मज्ञानेन हन्यते । दुःख का जन्म होता है, आत्मा के अज्ञान से, और दुःख का विनाश होता है आत्मा के ज्ञान से । शाखा एवं प्रशाखा से वृक्ष समृद्ध बनता है, उसी तरह कथा और अवान्तरकथा से यह ग्रंथ समृद्ध बना है । स्पर्शसुख की आसक्ति से 'बाल' की विडंबना दयोत्पादक है...स्वाद की लोलुपता से हुइ 'जड' की दुर्दशा सचमुच दर्दनाक है... सुगंध के आशिक 'मंद' की यातना स्तब्ध कर देती है... रूप के चाहक 'अधम' की दुःखकथा खतरे का निर्देश करती है....तो संगीत के गुलाम 'बालिश' की व्यथा विचाराधीन कर देती है । संसार की अत्यन्त रागी आत्मा भी इस कथाधारा से आप्लावित हो, तब उस का मन निर्णयबद्ध होता है, कि संसार का प्रत्येक सुख, दुःख से प्राप्त होता है, वह सुख वास्तव दुःखरूप है, और उसका परिणाम अनेकगुण दुःख के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है । आगमवचन है में ७९
SR No.034125
Book TitleArsh Vishva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyam
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages151
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size1 MB
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