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________________ मानता हूँ - इस विषय में और कुछ कहने की जरूरत नहीं । याद रहे, परदे के लम्हें अल्पतम होते है । दीर्घ है जीवन की वास्तविकता, जो घर-परिवार से ही जूडी हुई है। पैसे या प्रसिद्धि केवल अहंकार का पोषण कर सकते है, सच्चे सुख का कभी नहीं। अतः परम कारुणिक शास्त्रकारोने नारी का पूर्ण सम्मान करने के साथ साथ नारी रक्षा के जो भी उपाय दिखलाये वह नारी के हित में है, एवं उसका पालन ही सुखोपाय है, इस में कोई शंका नहीं। शंका - तो स्त्री केवल घर में सेवा करती रहे, यही आपका कहना है ? समाधान - आप समझे नहीं, पुरुष घर का बजेट पूरा करने के लिये जो परिश्रम करते है, वह क्यां घर की सेवा नहीं ? वह अपनी विधा की सेवा है। पुरुष यदि रसोई बनाने जाये तो, वह खुद भी परेशान होगा और सारा घर भी । बस, इसी तरह नारी यदि पुरुषयोग्य कार्य करने जाये तो वह भी दुःखी होगी और सारा घर भी । तुल्यता का अर्थ यह नहीं कि सब को एक लाठी से चलाया जाये । तुल्यता का अर्थ है समप्राधान्य, जो अपनी अपनी विधा से तुल्यगौरव का प्रतिपादन करता है। __ जहा तक सेवा की बात है, तो अपने संतान को नौकर / आया / बेबीसीटर के हवाले कर बोस । सेठ की सेवा करने जाना, या सास-ससुर को असहाय छोड़कर जनसेवा करने जाना, इसमें कितना औचित्य ? घर के सदस्यो के मन को दुभाकर दुनिया का मनोरंजन करने जाना उसमें कितना औचित्य ? एक सफल गृहिणी सारे घर के सदस्यो को सात्त्विक भोजन खिलाकर दोपहर में शांति से अपने शयनकक्षमें आराम फरमा रही है, वह भी एक अपूर्व सन्तोष के साथ, और उसी समय एक नारी ऑफिस में काम के बोजे के साथ युद्ध कर रही है और साथ साथ उसे घर की चिंता भी सता रही है, और इतना कम हो वैसे वह ऑफिस समय और सफर के दौरान असुरक्षितता का अनुभव भी कर रही है । दासी कौन ? और रानी कौन ? अब बात स्पष्ट है । नारी स्वातंत्र्य की बात करके नारी को बाझार में लानेवालो ने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से, आभोग या अनाभोग से नारी पर जो अत्याचार किये है, ऐसे अत्याचार शायद पीछे सैंकड़ों सालो में नहीं हुए। नारी का सही सम्मान तो हमारे शास्त्रो ने किया है, एवं इन शास्त्रो का आदर करने वालोने किया है। शंका - पर सुना है कि शास्त्रो में नारी की निंदा भी खूब लिखी हुई है, उस का क्यों ? १३०
SR No.034125
Book TitleArsh Vishva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyam
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages151
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size1 MB
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