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________________ ॥ श्लोकसौन्दर्यम् ॥ परगुणमच्छरभावो सगुणपसंसा य पत्थणाकरणं ।। अविणीयत्तं पुत्तय ! इमाइं गरुयं पि लहुइंति ॥ हे पुत्र ! (१) दुसरों के गुणों पर द्वेषभाव (२) अपने गुणों की प्रशंसा (३) याचनाकरण (४) अविनय - यह चार चीज ऐसी है, जिन से महान व्यक्ति भी तुच्छ बन जाती है। हे पुत्र ! (१) 40% गु॥ ५२ द्वेषभाव (२) पोताना गुसोनी प्रशंसा (3) યાચનાકરણ (૪) અવિનય - આ ચાર વસ્તુ એવી છે, જેમનાથી મહાન વ્યક્તિ પણ તુચ્છ બની જાય છે. परनिन्दापरिहारो, सपसंसालज्जणं अणत्थित्तं । सुविणीयत्तं च पुणो, इमाइं लहुयं पि गरुइंति ॥५०१॥ (१) दुसरों की निन्दा का त्याग (२) अपनी प्रशंसा से शर्म का अनुभव करना (३) याचना का त्याग (४) सम्यक् विनय - इन चार चीजो से क्षुद्र व्यक्ति भी महान बन जाती है। (१) बीना निहानी त्या(२) पोतानी प्रशंसाथी श२म अनुभवी (3) યાચનાનો ત્યાગ (૪) સમ્યફ વિનય આ ચાર વસ્તુથી ક્ષુદ્ર વ્યક્તિ પણ મહાન બની જાય जे निच्चं धम्मरया, अमय च्चिय ते जए मया वि नरा । जीवंता वि मय च्चिय, ते उण जे पावपडिबद्धा ॥ जो मनुष्य हमेशा धर्ममग्न है, वे मरने के पश्चात् भी विश्व में अमर ही है। किन्तु जो पापमग्न है, वे जीवित होते हुए भी मृततुल्य ही है। જે હંમેશા ધર્મમગ્ન છે, તેઓ મૃત્યુ બાદ પણ વિશ્વમાં અમર જ છે. પણ જે પાપમગ્ન છે, તેઓ જીવંત હોવા છતાં પણ મૃતતુલ્ય જ છે. ग्रंथ - संवेगरंगशाला ग्रंथकार - पूजनीय आचार्य जिनचन्द्रसूरिजी अनुवादकार - आचार्य कल्याणबोधि १२४
SR No.034125
Book TitleArsh Vishva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyam
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages151
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size1 MB
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