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________________ शील की नव थार ८० हूं न ? वैसे बाप तो बहुतों का बन चुकता, लेकिन मां सिर्फ तुम्हारी ही बना हूँ।".. गांधीजी नोमाखाली जान को थे। उस समय मन बहन के पिता जय खलाल भाई को पत्र दिया जिसमें लिखा-इस समय मन का स्थान मेरे पास ही हो सकता है।..." मनु बहन ने उत्तर में लिखा: “यदि मुझं किसी गांव में बैठाने का इरादा हो तो मुझे वहाँ नहीं माना है; परन्तु पाप अपनी व्यक्तिगत सेवा करने देने की शर्त पर प्राने दें तो ही मेरी इच्छा वहाँ पाने की है।" बापू ने तार द्वारा प्रस्ताव स्वीकार किया। मनु ने उत्तर में लिखा : ".."एक बार..."पादि मेरी सभी सहेलिया जानेवाली थी; तब मैंने कहा था, 'बापू, अब तो मैं अकेली हो गयी।' तब मापने मुझ से कहा था, 'तुम और मैं अकेले ही रहेंगे। मैं जीता हूँ तब तक तुम अकेली कैसे हो ।' और फिर पापने गीता के 'पापूर्यमाणम्'...श्लोक का अर्थ समझाया था। वह दिन सचमुच पा गया। मैं तो ईश्वर से प्रार्थना करती हूं कि वह मुने अन्त तक प्रामाणिकता से अापकी सेवा करने की शक्ति दे। ...सेवा करते-करते कोई छुरा भी भोंक देगा तो खुशी से वह दुःख सह लेंगी।...... " ____ मनु बहन पाने पिता के साथ ता० १९-१२-४६ को श्रीरामपुर पहुंची। गांधीजी ने जयमुखलाल भाई से कहा :..."यहाँ तो करना या मरना है। इसके लिए मनु की तैयारी होगी, इसका मुझे विश्वास नहीं था। ...यहाँ इसकी परीक्षा होगी। मैंने इस हिन्दू-मुस्लिम एकता को यज्ञ कहा है। इस यज्ञ में जरा भी मैल हो तो काम नहीं चल सकता। इसलिए मनु के मन में जरा भी मैल होगा तो इसका बुरा हाल होगा। यह सब तुम समझ लो, जिससे अब भी वापस जाना हो तो यह तुम्हारे साथ चली जाय। बाद में बुरा हाल होने पर जाय, उसके बजाय अभी लौट जाना ज्यादा अच्छा है।" र रात में महात्माजी ने मनु बहन को अपने साथ पानी शय्या में सुलाया। रात को ठीक १२॥ बजे सिर पर हाथ फर कर बापू ने मनु बहन को जगाया। बंले : "मनुड़ी, जागती हो क्या ? मुरो तुम्हारे साथ बातें करनी हैं । तुम पाना धर्म अच्छी तरह समझ लो।..." मनु बहन का निश्चय रहा: "जहाँ माप वहाँ मैं, मेरी यह एक शर्त प्रापको मंजूर हो तो फिर मैं किसी भी परीक्षा का और आपकी किसी भी शर्त का स्वागत करूंगी।" गांधीजी ने पत्र लिखा: "वि० मनुड़ी, अपना वचन पालन करना। मुझ से एक भी विचार छिपाना मत। जो बात पर्छ उसका बिल्कुल सच्चा उतर देना। आज मैंने जो कदम उठाया, वह खूब विचारपूर्वक उठाया था। उसका तुम्हारे मन पर जो असर हुमा हो वह मुझे लिख देना । मैं तो अपने सब विचार तुम्हें बताऊंगा ही। परन्तु इतना वचन मुझे तुम्हारी ओर से चाहिये । यह हृदय में अंकित करके रख लेता कि मैं जो कुछ कहूंगा या चाहूंगा, उसमें तुम्हारा भला ही मेरे सामने होगा।" मनु बहन ने मरते दम तक सब कष्ट सहन करने का वचन दिया। गांधीजी ने लिखा : "तुम्हारो श्रद्धा सवमुव ही यहाँ तक पहुंच गई हो तो तुम सुजित हो। तुम इस महायज में पूरा भाग अदा करोगी-मूर्ख हो तो भी..." जब मनु बहन के पिताजी लोटने लो तब गांवीजी ने कहा : "मेरी धारणा है कि जब तक मैं जिंदा है तब तक उसे जाने को नहीं कहूंगा। यह तंग पा जाय तो ले ही जा सकती है। परन्तु मेरा तो अभयदान है कि वह चाहे तो मुझे छोड़ सकती है, पर मैं इसे नहीं छोडगा ।......४" दिन में गांधी ने कहा-"अपनी मां से कुछ भी छिपामोगी तो पाप लगेगा। भले अच्छा विचार माये या बुरा, सब मुझं कह देना।" जर इस तरह मनु बहन गांधीजी की सार-सम्भाल में रहने लगी। गान्धीजी मनु बहन को अपनी ही शैया पर सुलाने लगे। इस कार्य के पीछे कई भावनाएं थीं। ...१-१९ वर्ष की प्रायु में भी मनु बहन में कामोद्रेक महीं, ऐसा उसका पहना था गांधीजी के मन में विचार उठा या तो 'मनहीं अपने मन को नहीं जानती प्रयवा स्वयं को धोखा दे रही है। उन्होंने सोचा मां के रूप में मेरा कर्तव्य है कि मैं असली बात जाने । १-बापू-मेरी माँ पृ० ३-१२ कला. चलो रे पृ० ४-६ -कला चलो रे पृ० ७-६ ४-बही पृ० १०-११ ५-वही पृ०१२ ६-My days with Gandhi P. 155 -- - Scanned by CamScanner
SR No.034114
Book TitleShilki Nav Badh
Original Sutra AuthorShreechand Rampuriya
Author
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1961
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size156 MB
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