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________________ भूमिका इसके उत्तर में महात्मा गान्धी ने जो लिखा, उससे इस प्रयोग के पीछे रही हुई उनकी भावना पर अच्छा प्रकाश पड़ता है। उन्होंने लिखा : "लेखक प्राश्रम में स्त्रियों के प्रति मेरे व्यवहार में, उनके मेरे मा समान स्पर्श में दोष देखते हैं। इस विषय की प्राश्रम में मैंने अपने साथियों के साथ चर्चा की है । श्राश्रम में जो मर्यादित छूट पड़ या अनपढ़ बहनें भोगती हैं, वैसी छूट धन्य कहीं हिन्द में वे भोगती हों, ऐसा मैं नहीं जानता । पिता अपनी पुत्री का निर्दोष स्पर्श सब के सामने करे, उसमें मैं दोष नहीं देखता । मेरा स्पर्श उसी प्रकार का है। मैं कभी एकान्त में नहीं होता। मेरे साथ रोज बालिकाएं घूमने को निकलती है तब उनके कंधे पर हाथ रखकर में चलता हूं उस स्पर्श की निरपवाद मर्यादा है, वह वे बालिकाएं जानती हैं और सब समझती हैं । "अपनी लड़कियों को हम बनाते हैं, उनमें अयोग्य विकार उत्पन्न करते हैं, और जो उनमें नहीं है उसका प्रारोप करते हैं, और फिर हम उन्हें कुचलते हैं, और बहु बार व्यभिचार का भाजन बनाते हैं। ये यही मानना सोखती है कि वे अपने शीस की रक्षा करने में प्रथम हैं। इस अपंगता से बालिकाओं को मुक्त करने का श्राश्रम में भगीरथ प्रयत्न चल रहा है। इस प्रकार का प्रयत्न मैंने दक्षिण अफ्रिका में ही प्रारंभ किया था। मैंने उसका खराब परिणाम नहीं देखा। किन्तु प्राथम की शिक्षा से कितनी ही बालिकाएं, बीस वर्ष तक की हो जाने पर भी निर्विकार रहने का प्रयत्न करनेवाली हैं, दिन-दिन निर्भय और स्वाश्रयी बनती जाती हैं। कुमारिका मात्र के स्पर्श से या दर्शन से पुरुष 'विकारमय होता ही है, ऐसी मान्यता पुरुष के पुरुषत्व को लज्जित करनेवाली है—- ऐसा मैं मानता हूं। यह बात अगर सच ही है, तो ब्रह्मचर्य प्रसंभव ठहरेगा । "इस संधिकाल के समय इस देश में स्त्री-पुरुष के बीच परस्पर सम्बन्ध की मर्यादा होनी ही चाहिए। छूट में जोखम है । इसका में रोज प्रत्यक्ष अनुभव करता हूं धतः स्त्री-स्वातन्त्र्य की रक्षा करते हुए जितनी मर्यादा रखी जा सकती हो उतनी प्रथम में मंडित है मेरे सिवा कोई पुरुष बालिकाओं का स्पर्धा नहीं करता, करने का प्रसंग ही नहीं होता। पितृत्व निया-दिया नहीं जा सकता। "मैं स्पर्श करता हूं उसमें योगबल का जरा भी दावा नहीं है। मुझमें योगबल जैसा कुछ नहीं है में दूसरों ही की तरह विकारमय माटी का पुतला हूं। पर विकारमय पुरुष भी पितारूप में देखने में धाये हैं। मेरी धनेक पुत्रियाँ हैं, अनेक बहिनें हैं। एक पत्नीव्रत से में बंधा हुआ हूं। पत्नी भी केवल मित्र रही है। भतः राहून विकराम विकारों पर दबाव डालना पड़ता है माता ने मुझे भर जवानी में प्रतिज्ञा का सौन्दर्य जानना सिखाया । वज्र से भी अधिक प्रभेद्य ऐसी प्रतिज्ञा की दीवाल मुझे सुरक्षित रखती है। मेरी इच्छा के विरुद्ध भी इस दीवाल ने मुझे सुरक्षित रखा है। भविष्य रामजी के हाथ में है ।" इस विषय का कु० प्रेमाबहन कंटक ने अपने एक पत्र में जिक्र किया। उसके उत्तर में (१८-८- ३२ को) महात्मा गांधी ने लिखा : "लोकमत याने जिस समाज के मत की हमको दरकार है, उसका मत यह मत नीति से विरुद्ध न हो तब तक उसे सम्मान देना धर्म है। धोबी के किस्से पर से शुद्ध निर्णय करना कठिन है। हम लोगों को तो बाज वह जरा भी अच्छा नहीं लगेगा। ऐसी टीका को सुनकर अपनी पक्षी का त्याग करनेवाला निर्दय धीर धन्यायी हो कहलायेगा । "लड़कियों के साथ मेरी छूट से श्राश्रमवासियों को प्राघात पहुँचता हो तो छूट लेना मुझे बन्द कर देना चाहिए, ऐसी मेरी मान्यता है। यह छूट लेने का कोई स्वतंत्र धर्म नहीं और लेने में नीति का भंग नहीं। पर ऐसी छूट न लेने से लड़कियों पर बुरा असर होता हो, तो मैं श्राश्रमवासियों को समझाऊँगा और छूट लूंगा। लड़कियाँ ही मुझे न छोड़ें तो फिर क्या करना, यह देखना मेरा काम रहा। मैं जो छूट जिस प्रकार से लेता हूं उसकी नकल तो कोई भी न करे 'धान से मुझे छूट लेनी है इस प्रकार विचार कर कृत्रिम रूप से कोई छूट नहीं ली जा सकती और कोई इस तरह से, तो यह बुरा ही कहा जायगा ।..... "मूल बात यह है कि जो कोई विकार के वश होकर निर्दोष से निर्दोष लगनेवाली छूट भी लेता है, वह खुद खाई में गिरता है धौर दूसरों को भी गिराता है। धरने समाज में जब तक स्त्री-पुरुष का सम्बन्ध स्वाभाविक नहीं होता, तब तक अवश्य चेतकर चलने की जरूरत है। इस सम्बन्ध में सबको लागू पड़े- ऐसा कोई राजमार्ग नहीं ... लौकिक मर्यादा मात्र खराब है, ऐसा कहकर समाज को भाषात नहीं पहुंचाना चाहिए।" : १-जीवन २०७५६ त्यागमूर्ति अने यीजा सेखो १० २६२-२४ कु० प्रेमाबहेन कंटकने (०) पृ० १२६-३० से संक्षिप्त बापूना पत्रो Scanned by CamScanner
SR No.034114
Book TitleShilki Nav Badh
Original Sutra AuthorShreechand Rampuriya
Author
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1961
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size156 MB
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