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________________ दो शब्द पाठकों के समक्ष भिक्षु-ग्रन्थमाला का तीसरा ग्रन्थ 'शील की नव बाड' के रूप में उपस्थित है। स्वामीजी की इस कृति के कई संस्करण निकल चके हैं। पर उसका सानवाद और सटिप्पण हिन्दी अनवादयक्त संस्करण यह प्रथम ही है। साधु और गृहस्थ दोनों के लिए ही ब्रह्मचर्य अत्यन्त महत्व का विषय है। भगवान महावीर ने ब्रह्मचर्य में स्थिरता और समाधि प्राप्त करने के लिए जिन नियमों की प्ररूपणा की, उन्हीं की विशद चर्चा प्रस्तुत कृति में है। मल कृति मारवाडी भाषा में है। यह संस्करण उसका हिन्दी अनुवाद सामने लाता है। ___ब्रह्मचर्य जैसे महत्वपूर्ण विषय पर गंभीर और विशद विवेचन करनेवाले दो महापुरुष सन्त टॉल्स्टॉय और महात्मा गांधी के विचारों को भूमिका में विस्तार से दिया गया है और जैन दृष्टि के साथ उनकी यथाशक्य तुलना की गई है। ___ यहाँ प्रसंगवश महासभा के इस विषयक दो अन्य प्रकाशनों की ओर भी पाठकों का ध्यान आकर्षित किया जाता है। पाठक उन पुस्तकों को भी प्रस्तुत ग्रन्थ के साथ पढ़ेंगे तो विषय की गंभीर जानकारी हो सकेगी। इन प्रकाशनों के नाम हैं-(१) ब्रह्मचर्य (महात्मा गांधी के ब्रह्मचर्य विषयक विचारों का दोहन) और (२) ब्रह्मचर्य (आगमों पर से ब्रह्मचर्य विषयक विचारों का संकलन)। आशा है, महासभा का यह प्रकाशन पाठकों के लिए अत्यन्त लाभप्रद होगा। जैन श्वेताम्बर तेरापन्थी महासभा ३, पोर्चुगीज चर्च स्ट्रीट, कलकत्ता-१ २८, दिसम्बर, १९६१ श्रीचन्द रामपुरिया व्यवस्थापक, साहित्य-विभाग Scanned by CamScanner
SR No.034114
Book TitleShilki Nav Badh
Original Sutra AuthorShreechand Rampuriya
Author
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1961
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size156 MB
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