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________________ शील की नव बाड़ छठी बाड़ (ढाल ७) : पूव-क्रीड़ाओं के स्मरण का वर्जन इस बाड़ का विषय है : 'रत वृत्तं मा स्मरस्मार्य'-सेवित क्रीड़ाओं का स्मरण न कर। स्मृतियों में 'स्मरण' को मैथुन का प्रकार कहा है । ब्रह्मचारी के लिए पूर्व रति, पूर्व क्रीड़ा के स्मरण का निषेध ह । ब्रह्मचारी स्त्री के साथ भोगे हुए भोग, हास्य, क्रीड़ा, मैथुन, दर्प, सहसा वित्रासन आदि के प्रसंगों का चिन्तन न करे। वह मनोहर गीत, वाद्य, नाटक प्रादि की स्मृति न करे। ब्रह्मचारी चंचल मन को वश में रखे–यही इस बाड़ का मर्म है। स्वामीजी ने पूर्व बाड़ों के साथ इस बाड़ का सम्बन्ध बड़े सुन्दर ढंग से बतलाया है। पांचवीं बाड़ में कामोद्दीपक शब्द सुनने का वर्जन है, चौथी बाड़ में रूप देखने का वर्जन है। तीसरी वाड़ में स्पर्श का वर्जन है । दूसरी बाड़ में स्त्री-कथा का वर्जन है। इस बाड़ में पूर्व में भोगे शब्द, रूप, गन्ध, रस और स्पर्श के अनुस्मरण का निषेध है। इन पाँच प्रकार के कामभोगों में से किसी एक भी प्रकार के कामभोग का स्मरण इस छठी बाड़ का उल्लंघन है । स्वामीजी ने बतलाया है कि पाल के टूटने पर जैसे जल-प्रवाह नहीं रुकता, उसी तरह बाड़ के भङ्ग होने पर काम-विकार को रोकना असंभव होता है। ...... स्वामीजी ने सातवीं ढाल में इस बाड़ का विवेचन करते हुए तीन दृष्टान्त या कथाएँ दी हैं जो, परिशिष्ट में दे दी गई हैं। सातवीं और आठवीं बाड़ (ढाल ८ और ९) : सरस आहार और अति आहार का वर्जन - ब्रह्मचर्य महाव्रत की पांच भावनाओं में एक भावना प्रणीत, स्निग्ध, दर्पकारी पाहार-वर्जन पर जोर देती है। संयमी को ऐसा आहार करना चाहिए जिससे संयम-यात्रा का निर्वाह हो, मोह का उदय न हो और ब्रह्मचर्य धर्म से वह न गिरे । उसके लिए नियम है-'वृष्यंमा भज।' दूध दही, घृत आदि युक्त कामोद्वीपक आहार न करें। इस महाव्रत की अन्य भावना कहती है-विम्रम न हो, धर्म से भ्रश न हो पाहार उतनी ही मात्रा में होना चाहिए। जो इन नियमों से युक्त होता है, उसकी अन्तर आत्मा पागम में ब्रह्मचर्य में तल्लीन, इन्द्रियों के विषयों से निवृत्त, जितेन्द्रिय और ब्रह्मचर्य की रक्षा के उपाय से युक्त कही गयी है। सरस मसालेदार उत्तेजक आहार का वर्णन सातवीं बाड़ और अति प्राहार का वर्जन पाठवीं बाड़ का विषय है । सरस और प्रति आहार की आत्मिक और शारीरिक बुराइयों को दिखाते हुए स्वामीजी ने ब्रह्मचर्य-रक्षा के इन नियमों पर हृदयग्राही प्रकाश डाला है। ब्रह्मचारी शरीर में पासक्त न हो। वह वर्ण के लिए, रूप के लिए, बलवीर्य की वृद्धि के लिए या विषय-सेवन की लालसा से भोजन न करें। केवल संयमी जीवन की जरूरी क्रियाओं के सम्यक् पालन की दृष्टि से सहभूत शरीर के निर्वाह की दृष्टि रखे। जिस तरह धरा में तेल डाला जाता है और घाव पर औषधि का लेप किया जाता है, उसी तरह देह में प्रमूछित ब्रह्मचारी केवल संयमयात्रा के निर्वाह के लिए ही सादा और परिमित पाहार करे । स्वाद के लिए नहीं। उत्तराध्ययन सूत्र (३५.१७) में कहा है : ... अलोले न रसे गिद्धे, जिब्भादंते अमुच्छिए। न रसट्टाए भुंजिज्जा, जवणट्ठाए महामुणी॥ आहार के विषय में ब्रह्मचारी इन्हीं सूत्रों पर दृष्टि रखता हुआ चले । यह पागम की वाणी है। 15 DEORATE (१) बंधन की कथा नियम ज्ञाता धर्म में दो कथाएं हैं जो इस आदर्श पर गंभीर प्रकाश डालती हैं। पहली कथा के विषय में काका कालेलकर लिखते हैं"मात्मा अनात्मा का भेद जान लेने के पश्चात् हमारी सम्पूर्ण निष्ठा आत्मतत्त्व पर होते हुए भी अनात्मतत्त्व-शरीर को अनासक्त भाव से निभाये बिना छुटकारा नहीं, यह वस्तु सार्थवाह घन्य और विजय चोरवाली वार्ता में जिस प्रकार बतायी गयी है, वैसे असरकारक ढंग से बताई गई अन्यत्र कहाँ मिलती है ?"", संक्षेप में यह कथा इस प्रकार है : राजगृह में धन्य नामक एक सार्थवाह रहता था। उसकी भार्या का नाम भ्रद्रा था। देवताओं की मनौतियाँ मनाते-मनाते उनके एक पुत्र हुआ । उसका नाम उन्होंने देवदत्त रखा । सार्थवाह के पंथक नामक एक दासपुत्र था । वह देवदत्त को खिलाया करता। राजगृह के बाहर विजय नामक एक तस्कर रहता था। एक दिन पंथक बालक को अकेला छोड़, अन्य बालकों के साथ खेलने लगा। विजय बालक को उठा ले गया। और उसके शरीर से गहने उतार उसे मार मालकाकच्छ में छिप गया। पंथक ने पाकर सारी बात सार्थवाह से कही। कोतवाल चोर के पाद-चिन्हों की खोज करता हुया मालकाकच्छ पहुंचा। वहाँ उसने विजय चोर को पकड़ लिया। बालकों के चोर, बालकों के घातक उस विजय १-भगवान महावीर नी धर्मकथाओ: दृष्टि अने बोध पृ० १६ का अनुवाद देवताओं को मार बालकों के अवदत्त को खिलाया मनाते मनाते . रार से गहने उताइन पंथक बालकमक एक दासपुत्र Scanned by CamScanner
SR No.034114
Book TitleShilki Nav Badh
Original Sutra AuthorShreechand Rampuriya
Author
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1961
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size156 MB
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