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________________ ७८ कथा – ६ : प्र , भरतक्षेत्र में जितने प्रकार के धान्य होते हैं, उन सर्व प्रकार के सर्व धान्यों को सम्मिनित कर उसमें एक सेर सरसों के दाने मिलाकर एक बार किसी देव ने एक शतवर्षीया वृद्धा से जिसका शरीर जर्जर नेत्रों की ज्योति मंद एवं क्रियाशक्ति विनष्ट हो चुकी थी, कहा - "हे वृद्धा ! इस समस्त प्रकार के धान्यों को चुन चुनकर क्रमानुसार बिलग कर दो और उनमें एक सेर सरसों के जो दाने डाले गये हैं, उन्हें एकत्रित कर लो ।” एक तो शतवर्षीया वृद्धा, फिर शरीर कार्य करने में सर्वथा असमर्थ, आंखों में रोशनी नहीं, हाथ-पांव शिथिल और कंपित, और भरत क्षेत्र के सब प्रकार के सर्व धान्यों का ढिग, उसके धान्यों को अलग करना, और उसमें से सरसों के दानों को अलग करना । यह उस वृद्धा के लिये असम्भव है। फिर भी कदाचित उस वृद्धा को सफलता भी मिल सकती है लेकिन एक बार खो देने के बाद पुनः मनुष्य जन्म की प्राप्ति अत्यंत दुर्लभ है । कथा-७ : धान्य का दृष्टान्त ( मनुष्य भव की दुर्लभता पर तीसरा दृष्टान्त ) [ इसका सम्बन्ध ढाल १ दोहा ७ ( पृ० ४ ) के साथ है ] 2 जुए का दृष्टान्त ( मनुष्य भव की दुर्लभता पर चौथा दृष्टान्त । [ इसका सम्बन्ध ढाल १ दोहा ७ ( पृ० ४) के साथ है ] शील की नव वाड़ 18 19 बसन्तपुर के राजा जितशत्रु की राजसभा में १०८ स्तम्भ थे तथा प्रत्येक स्तम्भ के १०८ कोण राजकुमार पुरन्दर ने वृद्ध पिता को मारकर स्वतः गद्दी पर बैठने का सोचा। मन्त्री के द्वारा राजा को इस पड्यन्त्र का पता चल गया । उसने सोचा पिता-पुत्र दोनों जीवित रहें, ऐसी कोई योजना बनानी चाहिए। उसने राजकुमार को बुलाकर कहा- "हे पुत्र! वृद्धावस्था के कारण शासन-सूत्र मैं तुझे सौंपता हूं। लेकिन शासन की बागडोर थामने के पूर्व पारिवारिक परम्परानुसार तुम्हें मेरे साथ जुआ खेलना पड़ेगा। एक बार जीतने पर सभामंडप के एक स्तम्भ का एक कोण तुम्हारा होगा । इस प्रकार १०८ बार जीतने पर एक स्तंभ तुम्हारा और १०८ स्तंभ जीतने पर यह सम्पूर्ण राज्य तुम्हारा होगा। शर्त यह होगी कि अगर बीच में तू एक बार भी हार गया तो पूर्व के जीते हुए संभे भी हारे हुए समझे जायेंगे ।" राज पाने के लोभ में पड़कर इतनी कड़ी शर्त को भी कुमार ने स्वीकार कर लिया। परन्तु, कई दिनों तक खेलने के बाद भी कुमार एक कोण भी नहीं जीत सका । प्रश्न यह है कि क्या इस प्रकार के जुए में राजकुमार जीत सकता था ? कदापि नहीं। कदाचित् दैवयोग से यदि उसे जयश्री मिल भी जाये लेकिन एकबार खोने के बाद यह मनुष्य जन्म पाना अत्यंत दुर्लभ है । १ - उत्तराध्ययन सूत्र अ० ३ गा० १ की नेमिचन्द्रिय टीका के आधार पर । २- उत्तराध्ययन सू० अ० ३ गा० १ की नैमिचन्द्रिय टीका के आधार पर । Scanned by CamScanner
SR No.034114
Book TitleShilki Nav Badh
Original Sutra AuthorShreechand Rampuriya
Author
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1961
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size156 MB
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