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________________ नवम बाड़ : ढाल १० : टिप्पणियाँ —-विभूषा करनेवाला भिक्षु उस कारण से चिक्कन कर्मों का बन्ध करता है, जिससे दुरुत्तर संसार-सागर में पतित होता है। - ज्ञानी विभूषा-सम्बन्धी संकल्प-विकल्प करनेवाले मन को ऐसा ही दुष्परिणाम करनेवाला मानते हैं। यह सावद्य बहुल कर्म है। यह निर्ग्रथों द्वारा सैव्य नहीं। [ ४ ] ढाल गा० ७ : इस गाथा का आधार सूत्र का निम्न वाक्य है : ६३ विभूसावत्तिए विभूसियसरीरे इत्थिजणस्स' अभिलणिजे हवई - उत्त० १६:९ - विभूषा की भावनावाला ब्रह्मचारी निश्चय हो विभूषित शरीर के कारण स्त्रियों का काम्य- उनकी अभिलाषा का पदार्थ हो जाता है। तओ णं इत्थिजणेणं अभिलसिज्जमाणस्स बम्भचेरे संका वा कंखा वा विइगिच्छा वा समुपज्जिज्जा भेदं वा लभेज्जा उम्मायं वा पाउणिज्जा दोहकालियं वा रोगायक हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ धम्माओ भंसेज्जा । - उत्त० १६:९ - जो ब्रह्मचारी इस प्रकार स्त्रियों की अभिलाषा का शिकार बनता है उसके मन में ब्रह्मचर्य का पालन करू या नहीं. ऐसी शंका उत्पन्न हो जाती है। वह स्त्री-सेवन की कामना करने लगता है। ब्रह्मचर्य के उत्तम फल में उसे विचिकित्सा - विकल्प - सन्देह उत्पन्न होता है। इस तरह ब्रह्मचर्य से उसका मन भेद हो जाता है। वह उन्माद का शिकार बनता है, उसके दीर्घकालिक रोग हो जाते हैं। वह केवली प्ररूपित धर्म से पतित हो जाता है। ] ढाल गा० ८-६ : गा० ७ में जो बात लिखी है उसी को स्वामीजी ने एक उदाहरण द्वारा समझाया है। जैसे एक गरीव के हाथ में रत्न होने पर उसके प्रति आँख गड़ जाती है और राजा उस रत्न को उससे ले लेता है उसी तरह से जो तन को इरित करता है उस पर स्त्रियों की आँखें टिक जाती हैं और मोहित स्त्रियाँ उसके शीलरूपी सन को उससे छीन लेती है। पुरुष इस तरह स्त्रियों का काम्य न वने । उसका शीलव्रत भङ्ग न हो इसके लिए आवश्यक है कि वह कदापि किसी तरह का शृङ्गार न करे। जो ब्रह्मचारी शृङ्गार से बचता है वह ब्रह्मचर्य की अखण्ड आराधना करने में सफल होता है और फलस्वरूप भव-समुद्र को पार करने में समर्थ होता है। आयकर काट Scanned by CamScanner
SR No.034114
Book TitleShilki Nav Badh
Original Sutra AuthorShreechand Rampuriya
Author
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1961
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size156 MB
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