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________________ १ – आठमीं बाड़ चांप २ न प्रमांण लोप तो वरत ने हुवें में इम कलों, करणो आहार । इको करें, बिगाड ' ॥ १ ३ – अति आहार थी - घर्णेज फा आठमीं बाड़ आठम बाड़ में इस कह्यों, चांप चांप न करणो आहार ढाल : ६ दुहा २- अति आहार थी गलें रूप बल परमाद निद्रा आलस वले अनेक रोग होय धांन अमाउ हांडी फा दुख हुर्वे, गात । हुर्वे, १ -भर देह जात ॥ विर्षे वर्धे, पेट | उरतां, नेट ॥ ४ – केई बाड़ लोपे विकल थका, आहार । करसी इधक त्यांरें कुण २ ओगुण नीपजें, ते विस्तार ॥ जोबन रे मांहि निरोगी मांहे तेजस रो जोरो घणों ए ॥ हुवें । १ - आठवीं बाड़ में भगवान् ने कहा है - साधु हँस-हँस कर आहार न करे । प्रमाण से अधिक आहार करने से व्रत को क्षति पहुँचती है । रे, २ – अति-आहार से 'मनुष्य दुःखी होता है । रूप, बल और गात्र क्षीण हो जाते हैं। प्रमाद, निद्रा और आलस्य होते हैं तथा अनेक रोग उत्पन्न हो जाते हैं । ३ - अधिक आहार से विषय-वासना बढ़ती है। जिस प्रकार सेर की हांड़ी में सवा सेर अनाज डालने से हाँड़ी फूट जाती है, उसी प्रकार अधिक आहार से बुरी तरह पेट फटने लगता है । ढाल [ विमल कैवली एक रे चम्पा नगरी ] ४ – जो विकल होकर, बाड़ की मर्यादा का उल्लंघन कर, अधिक आहार करते हैं— उनमें किनकिन दुर्गुणों की उत्पत्ति होती है, उसका वृतान्त विस्तारपूर्वक सुनो। १ - पूर्ण यौवनावस्था में देह निरोग होती है। और पाचन शक्ति बलवती होती है। Scanned by CamScanner
SR No.034114
Book TitleShilki Nav Badh
Original Sutra AuthorShreechand Rampuriya
Author
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1961
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size156 MB
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