SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 171
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथम बाड़: ढाल २: टिप्पणियां जाय। [१३] ढाल गा० १०: स्त्री के साथ सहवास करने में ब्रह्मचारी के लिए बड़ा खतरा है. इसलिए उसे पकान्त स्थान में रहने का उपदेश हा कहा जउकुम्भे जहा उवज्जोई। संवासे विऊ विसीएज्जा ॥ -सू०१,४।१:२६ -जिस प्रकार आग्नक निकट लाख का घड़ा गल जाता है, उसी प्रकार विद्वान पुरुष भी स्त्री के सहवास से विषाद को प्राप्त होता है। अह सेऽणुतप्पई पच्छा, भोच्चा पायसं व विसमिस्सं । एवं विवेगमायाय, संवासो न वि कप्पए दविए । -सू०१.४ | १:१० -विष मिश्रित खोर के भोजन करनेवाले मनुष्य को तरह स्त्रियों के सहवास में रहनेवाले ब्रह्मचारी को पोछे विशेष अनुताप करना पड़ता है। इसलिए पहले से ही विवेक रखकर मुमुक्षु स्त्रियों के साथ सहवास न करे। . Scanned by CamScanner
SR No.034114
Book TitleShilki Nav Badh
Original Sutra AuthorShreechand Rampuriya
Author
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1961
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size156 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy