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________________ शील की नव बाड़ नायें भी तो यह न होने के बराबर है मेरा गग से लगेगा?" बाईक धबधाईक जाने को तैयार हुए यह बात करने सायक भी हो गया अपनी मां से । गये। बालक बड़ा हुआ धौर चलने-फिरने लगा। श्रीमती चिंतित हो गई, धाविर में उसे एक उपाय श्रीमती बोली "पुत्र ! तुम्हारे पिता हम दोनों को सूझा। एक चर्खा लेकर वह कालने बैठी। पुत्र ने पूछा- "म ! यह क्या करती हो ?" छोड़कर जाना चाहते है। तु अभी छोटा है। कमाने लायक अभी नहीं हुया । श्रतः मैं यह उद्यम सीख रही हूँ, जिससे भविष्य में तुम्हारा पोषण " १६८ यह सुनकर बालक ने माता के काते हुए सूत की गुंडी हाथ में ले ली और पिता के पास पहुँच उस कच्चे सूत से उनके श्रांट देने लगा। [ देखकर माईक हंसने लगे और बोले "तू यह क्या कर रहा है ?" बालक बोला यह "श्राप हम लोगों को छोड़ कर जाना चाहते हैं। मैंने धाप को बांध लिया है। देव धाप कैसे जायेंगे " घाईक गंभीर हो गये। उन्होंने लपेटे हुए मूल के पागे गिने और बालक से बोले "तुमने जितने घांट दिए हैं, उतने वर्ष धीर तुम्हारे साथ रहूँगा।" देखदे-देखते उतने वर्ष बीत गए। पाखिर बाईक ने श्रीमती धीर बालक से विदा ली तथा धमग भगवान महावीर के पास पहुंचे। उनसे अवस्था ग्रहण की धीर संयम का दृढ़तापूर्वक पालन करते हुए रहने लगे। आर्द्रक आईक कुल २४ वर्ष तक श्रीमती के साथ रहे। उसके बाद वे पुनः मुनि हुए। ३४ - ब्रह्मचर्य और उसका फल ब्रह्मचर्य का फल बताते हुए पतञ्जलि ने कहा है- " ब्रह्मचर्य प्रतिष्ठायां वीर्यलाभः " " — ब्रह्मचर्य से वीर्य की प्राप्ति होती है। इसकी टीका में इस सूत्र की व्याख्या करते हुए लिखा गया है— जो मनुष्य ब्रह्मचर्य का पालन करता है, उसको उसके प्रकर्ष से निरतिशय वीर्य का सामर्थ्य का लाभ होता है। वीर्य निरोध ही ब्रह्मचर्य है। ब्रह्मचर्य के प्रकर्ष से शरीर इन्द्रिय और मन में प्रकर्ष वीर्य-शक्ति उत्पन्न होती है"थः महाचर्यमभ्यस्यति तस्य तत्प्रकपन्निरतिशयं वीयं सामर्थ्यमाविर्भवति वीर्थनिरोधो हि मह्मचर्यम् तस्य प्रकर्षाच्छरीरेन्द्रियमनः श्रीयं प्रकर्षमागच्छति।" 1 पति ने जो बात कही, वही महात्मा गांधी ने धन्य शब्दों में इस प्रकार कही है- "सब इन्द्रियों का संयम करनेवाले के लिए वीर्य संग्रह सहज और स्वाभाविक क्रिया हो जाती है।" उनके अनुभव के अनुसार वीर्यं धनमोल शक्ति है। तन, मन धीर धारणा का बत तेज बनाये रखने के लिए वह परमावश्यक है। वे लिखते हैं-"वीर्य को पचा लेने का सामर्थ्य लंबे अभ्यास से प्राप्त होता है । यह अनिवार्य भी है, क्योंकि इससे हमें तन-मन का जो बल मिलता है, वह और किसी साधना से नहीं मिल सकता" "सारी शक्ति उस वीर्याक्ति की रक्षा धीर गति से प्राप्त होती है, जिससे कि जीवन का निर्माण होता है। मगर इस वीर्य शक्ति को नष्ट होने देने के बजाय संचय किया जाय, तो यह सर्वोत्तम सृजन-शक्ति के रूप में परिणत हो सकती है।" वीर्य की इस श्रमोघ शक्ति को ध्यान में रख कर ही ऋषि ने कहा: “मरणं बिन्दुपातेन जीवन विन्दुधारणात्।" महात्मा गांधी ने कहा है-जिस बी में दूसरे मनुष्य को पैदा करने की शक्ति है, उस वीर्य का फिजूल स्खलन होने देना महान अज्ञान की निशानी है५ ।" "नित्य उत्पन्न होनेवाले वीर्य का अपनी मानसिक, शारीरिक और श्राध्यात्मिक शक्ति बढ़ाने मैं उपयोग कर लेना चाहिए ।" १ - पातज्जल योगसूत्र २.३८ २- आरोग्य की कुंजी पृ० ३ ३- अनीति की राह पर पृ० १०८ ४-महाचर्य (१० भा० ) १० १०५ ४-आरोग्य की कुंजी पृ० ३२ -यही पृ० ३४ vis क ng ि स (Tha Scanned by CamScanner
SR No.034114
Book TitleShilki Nav Badh
Original Sutra AuthorShreechand Rampuriya
Author
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1961
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size156 MB
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