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________________ शील की नव याद "किसी भी विशाल ध्येय के वास्ते भी ब्रह्मचर्य की साधना की जाती है। जैसे, भीष्म ने अपने पिता के लिए ब्रह्मचर्य की प्रतिमा थी।"""उनका जो प्रारंभ हमा, वह ब्रह्म की प्राप्ति के लिए नहीं हमा। फिर भी उनका जो ध्येय था, यह बड़ा ही था। अपने पिता के लिए उन्होंने त्याग किया और फिर उसका अर्थ उन्होंने गहरा सोच लिया। उसी तरह गांधीजी ने भी समाज की सेवा के लिए ब्रह्मचर्य का प्रारंभ किया। ...''लेकिन बाद में उनका विचार उस चीज की गहराई में पहुँचा। गांधीजी ने भी जो प्रारम्भ किया, वह अन्तिम उद्देश्य से.. ब्रह्म की प्राप्ति के उद्देश्य से नहीं किया, बल्कि समाज-सेवा के लिए किया। वह भी एक विशाल ध्येय है। फिर उनका विचार विकसित होता गया। - "इसी तरह ब्रह्मचर्य दूसरी बातों के लिए भी होता है।....."तन्मयता में एक बड़ी शक्ति है। किसी एक ध्येय में तन्मय हो जानो, रात दिन वही बात सूझे, तो ब्रह्मचर्य सध सकता है। माना कि वह पूरा ब्रह्मचर्य नहीं है। कारण, जब तक ब्रह्मनिष्ठा उत्पन्न नहीं होती है, तब तक पूरा ब्रह्मचर्य नहीं कहा जा सकेगा।"- ...... . 27 जैन धर्म में सबसे विशाल ध्येय है प्रात्म-शोधन । जो रात-दिन प्रात्म-शोधन में लगा रहता है, उसका ब्रह्मचर्य अपने पाप सधता है । २७-ब्रह्मचर्य और आत्मघात 7 ऐसे अवसर पा सकते हैं, जब किसी बहिन पर बलात्कार होने की परिस्थति पैदा हो गई हो। ऐसी स्थिति में अपने शील की रक्षा के लिए बहिन क्या करे ? ऐसे ही प्रश्न का उत्तर देते हुए, एक बार महात्मा गांधी ने कहा था : “.."बहुत स्त्रियाँ यह मानती हैं कि अगर उनकी रक्षा करनेवाला कोई तीसरा आदमी न हो या वे खुद कटारी या बन्दूक वगैरह का इस्तेमाल करना न सीखी हों, तो उनके लिए जालिम के वश में होजाने के सिवा और कोई उपाय ही नहीं। ऐसी स्त्री से मैं जरूर कहूंगा कि उसे पराये के हथियार पर भरोसा रखने की कोई जरूरत नहीं। उसका शील ही उसको रक्षा कर लेगा। मगर वैसा न हो सके, तो कटारी वगैरह काम में लेने के बजाय, वह प्रात्म-हत्या कर सकती है। अपने को कमजोर या अबला मान लेने की कोई आवश्यकता नहीं।" (३-७-'३२) - उन्होंने दूसरी बार कहा-"जिसका मन पवित्र है, उसे विश्वास रखना चाहिए कि पवित्रता की रक्षा ईश्वर जरूर करेगा। हथियारों का आधार झूठा है। हथियार छीन लिए जाय तो? अहिंसा-धर्म का पालन करनेवाला हथियारों का भरोसा न रखे ; उसका हथियार उसकी महिंसा, उसका प्रेम है।" ......"जो अहिंसा-धर्म का पालन करता है, वह मरकर ही अपनी रक्षा करेगा, मारकर नहीं। स्त्रियों को द्रौपदी की तरह विश्वास रखना चाहिए कि उनकी पवित्रता (यानी ईश्वर) उनकी रक्षा करेगी ... ३।" (३१-७-'३२) - इसी समस्या पर विचार करते हुए उन्होंने बाद में लिखा : "यदि लड़कियों को मालूम होने लगे कि उनकी लाज और धर्म पर हमला होने का खतरा है, तो उनमें उस पशु मनुष्य के आगे प्रात्म-समर्पण करने के बजाय मर जाने तक का साहस होना चाहिए। कहा जाता है कि कभी-कभी लड़की को इस तरह बांधकर या मुंह में कपड़ा लूंसकर विवश कर दिया जाता है कि वह आसानी से मर भी नहीं सकती, जैसे कि मैंने सलाह दी है । लेकिन मैं फिर भी जोरों के साथ कहता हूं कि जिस लड़की में मुकाबिले का दृढ़ संकल्प है, वह उसे असहाय बनाने के लिए बांधे गये सब बन्धनों को तोड़ सकती है। दृढ़ संकल्प उसे मरने की शक्ति दे सकता है।" (३१-१२-३८) _महात्मा गांधी ने एक बार यह भी कहा-"प्रात्म-हत्या करने का धर्म अपने आप सूझना चाहिए । कोई स्त्री बलात्कार न होने देने के लिए प्रात्म-हत्या करना पसन्द न करे, तो मुझे या तुम्हें यह कहने का हक नहीं है कि उसने अधर्म किया।" (३-७-३२)-giri महात्मा गांधी ने शील-रक्षा के लिए प्रात्म-हत्या की राय दी, उसके पीछे निम्न भावना थी:Fo"कोई औरत प्रात्म-समर्पण करने के बजाय निश्चय ही प्रात्म-हत्या करना ज्यादा पसंद करेगी। दूसरे शब्दों में जिंदगी की मेरी योजना में आत्म-समर्पण को कोई जगह नहीं। लेकिन मुझसे यह पूछा गया था कि प्रात्म-हत्या या खुदकुशी कैसे की जाय ? मैंने तुरंत जवाब दिया १-महादेवभाषी की डायरी (पहला भाग) पृ. २६४ लामा २-वही पृ० ३३०. M ३-ब्रह्मचर्य (प: भा०) पृ० ११५ . .... ४-महादेवभाषी की डायरी (पहला भाग) पृ०२६४ 15 ... samaARTE BAREnfini t ivissa Scanned by CamScanner
SR No.034114
Book TitleShilki Nav Badh
Original Sutra AuthorShreechand Rampuriya
Author
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1961
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size156 MB
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