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________________ शील की नव बाद १०० रहा है।" द्वारपालों ने सुदर्शन को कंद कर लिया पाणीवाहन राजा ने सुदर्शन को धूली पर चढ़ाने का आदेश दिया। सुदर्शन शांत रहे। नगुकारमंत्र का ध्यान करने लगे झूली सिंहासन के रूप में परिणत हुई। इसके बाद सुदर्शन धर्मघोष स्थविर के उपदेश से गृहत्याग कर मुनि हुए भय एक दवदंती नामक वेश्या मुनि सुदर्शन के रूप पर मोहित हो गयी। उसने श्राविका का रूप बनाया। मुनि सुदर्शन आहार के लिए उसके घर आये । वेश्या ने गृह-द्वार बन्द कर लिया और मुनि को अपने वश में करने का प्रयत्न करने लगी। मुनि उस सुन्दरी वेश्या के सम्मुख भी निर्विकार रहे। वेश्या ने अाखिर उन्हें छोड़ दिया। सुदर्शन ने अपनी साधना से मोक्ष प्राप्त किया। महात्मा गांधी ने जितने गुण ब्रह्मचारी के बतलाये हैं, वे सारे के सारे सुदर्शन में देखे जाते हैं । उनमें नपुंसकत्व की सिद्धि थी। वे ऐसी स्थिति में आ गये जब स्पर्शादि की बाड़ें स्वयं नहीं रहीं, फिर भी अपनी मानसिक, वाचिक और शारीरिक स्थिति के कारण वे ब्रह्मचारी के आदर्श उदाहरण समझे जाते हैं। स्थूलिभद्र और सुदर्शन की स्तुति में कवियों की लेखनी झंकृत हो उठी : नविआए पमयवणंमि वुच्छों ॥ वशिनः सहस्रशः । वशिनः सहस्र सिरसव न सो मुणी श्रयंतो अतो वासं दुरं बलंबतोडणं, अंबयलुंबतोडणं, न दुकरं तं दुक्करं तं च महानुभावं, जं गिरौ गुहायां विजने वनान्तरे, हम्यति रम्ये युवतीजनांतिके, श्रीनंदी पेणरथनेमिमुनीवराई शान नेमिखदर्शनानाम्, तुर्यो भविष्यति निहत्य श्रीनेमिवोपि तं विचार्य, मन्यामहे वयम वशी स एकः या त्वया मदन रे १- भिक्षु ग्रन्थ खाकर ०२ र १६० ३१ से २६६ २- पृ० ७२ ३- वही ४- पृ० ७३ शकडालनंदनः ॥ मुनिरेष दृष्टः । रणांगणे माम् ॥ Serie भटमेकमेव । देवोर्गमा जिगाय मोहं धन्मोहनाव्यमयं तु वशी प्रविश्य ॥ महात्मा गांधी ने स्वयं अपने लिए ऐसी स्थिति उत्पन्न की जिसमें बाढ़ नहीं रहीं। अगर उनकी स्थिति बहिनों के सम्पर्क में भी विशुद्ध रही तो स्थूलभद्र और सुदर्शन की तरह वे भी ब्रह्मचारी क्यों न कहे जा सकेंगे ? यह एक प्रश्न है जिस पर जैनियों को गंभीर विचार करना है । ६ मुनिः स्थूलभद्र ने आचार्य संभूतिविजय से वेश्या के यहाँ चातुर्मास करने की आज्ञा ली स्पूलिभद्र का यह प्रयोग इस बात का प्रमाण बन गया कि ब्रह्मचर्य की साधना में एक मुनि कितना आगे बढ़ा हुआ हो सकता है। महात्मा गांधी के स्वप्रयोग भी इसी दृष्टि से थे। वह इस बात की खोज में थे कि 'संयम धर्म कहाँ तक जा सकता है। इस मुनि स्थलिभद्र और महात्मा गांधी के दृष्टान्त केवल इसी दृष्टि से ढ़ होना चाहिए और कितनी ऊंचाई तक पहुंचा हुआ होना चाहिए महात्मा गांधी अपने प्रयोगों में रहे हुए खतरों से अच्छी तरह अवगत थे। "स्त्री-पुरुष के बीच परस्पर सम्बन्ध की मर्यादा होनी ही चाहिए छूट में जोखम है, इसका मैं रोज प्रत्यक्ष अनुभव करता है। जो कोई विकार के क्या होकर निर्दोष से निर्दोष लगनेवाली भी छूट लेता है, वह खुद खाई में गिरता है और दूसरों को भी गिराता है।" "मेरे उदाहरण का जैसे स्थूलिभद्र का प्रयोग उनके गुरुभाई सिंहगुफावासी मुनि के लिए एक धर्म के रूप में नहीं हुआ था और उनके अनुकूल नहीं पड़ा, वैसे ही महात्मा गाँधी ने भी कहा था : "निर्दोष स्पर्श की छूट लेना कोई स्वतंत्र धर्म नहीं । समीक्ष अनुकरणीय हैं कि मनुष्य को अपने ब्रह्मचर्य की आराधना में कितना ने इस बात का आदर्श नहीं रखते कि सब को ऐसा करना चाहिए। उनके निम्न शब्द हर समय साधक के कानों में गूंजते रहने चाहिए : bub Scanned by CamScanner
SR No.034114
Book TitleShilki Nav Badh
Original Sutra AuthorShreechand Rampuriya
Author
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1961
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size156 MB
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