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________________ ६० शील की नव बाड़ इसके बाद भी पत्र-व्यवहार चलता ही रहा। अन्त में महात्माजी के सामने यह सुझाव पाया कि चूकि दोनों ही पक्ष एक दूसरे को नहीं समझा सके हैं, अत: स्त्री-पुरुष-सम्बन्ध और स्त्री-पुरुष-व्यवहार के सम्बन्ध में वर्तमान स्थितियों के अनुकूल मर्यादा स्थिर करने का प्रय कितने ही व्यक्तियों पर छोड़ा जाय। १-गान्धीजी का मत रहा-प्रस्तावक पुराने परम्परा के नियमों से दूर जाना नहीं चाहते और मैं सत्य की अनन्त खोज में उन शर्तों से बद्ध नहीं हो सकता, जो उस खोज में बाधक हो। उन्होंने लिखा-पाप ही की स्वीकृति के अनुसार नया विधान आप पर लाग नहीं होगा। जी तक मेरा सवाल है, वहां तक मैं अपनी ही मर्यादानों से बंधा रहूंगा। इस तरह दोनों जहाँ हैं, वही रहेंगे। ऐसी परिस्थिति में कोई लाभ नहीं कि हम लोग भूसी में से धान निकालने के काम में लोगों को लगावें। उपर्युक्त वार्तालाप के दो दिन बाद (ता.१८-३-'४७ को) महात्मा गांधी ने श्रीमती अमृतकौर को जो पत्र लिखा, वह इस प्रकार है: "तुम्हें मेरे इस वक्तव्य को मंजूर करने में कोई कठिनाई नहीं होगी कि हम लोगों में से ब्रह्मचर्य की पूरी कीमत और उसका अर्थ कोई नहीं जानता और हम मूों में, मैं ही कम मूर्ख हैं और अधिक से अधिक अनुभवी।"..."मैंने हजारों स्त्रियों का स्पर्श किया है, परन्तु मेरे । स्पर्श का अर्थ कभी भी विकार-भाव नहीं रहा। मेरा स्पर्श दोनों के हित के लिए रहा। जिनका अनुभव इससे भिन्न हो, वे मेरे विरुद्ध .. अपने सबूत पेश करें।""""ब्रह्मचर्य का मेरा अर्थ यह है-वह ब्रह्मचारी है जिसके मन में कभी भी विकार नहीं होता। और जो ईश्वर के प्रति अपनी निरन्तर मौजदगी के द्वारा ऐसा संयमी हो गया है कि वह नग्न स्त्रियों के साथ नग्नरूप में सो सकता है, चाहे वह कितनी भी सुन्दर क्यों न हो और ऐसा करने पर भी जिसमें किसी तरह की विषय-भावना की जागृति नहीं होती। ऐसा व्यक्ति कभी झूठ नहीं बोलेगा। दुनिया में किसी भी स्त्री व पुरुष के प्रति किसी तरह की क्षति नहीं करेगा व क्रोध और द्वेष से मुक्त होगा और भगवद्गीता की परिभाषा के अनुसार स्थितप्रज्ञ होगा। ऐसा पुरुष पूर्ण ब्रह्मचारी है । ब्रह्मचारी का शाब्दिक अर्थ है-वह व्यक्ति जो कि ईश्वर की ओर क्रमशः हमेशा बढ़ता जाता है और जिसका प्रत्येक कार्य इसी ध्येय से किया जाता है और किसी अभिप्राय से नहीं ।" प्रयोग स्थगित करने के पहले और बाद में महात्मा गांधी की जो भावना रही, वह उपर्युक्त उद्धरणों से स्पष्ट है। प्रयोग स्थगित किया गया, उसका कारण ठक्कर बापा के अनुरोध की रक्षा और लोगों को इस प्रयोग के मर्म को समझने के लिए कुछ अवकाश देना मात्र था। इस प्रयोग के विषय में निम्न बातें चिन्तनीय हैं : महात्मा गांधी ने इस प्रयोग पर विचार जानने के लिए अनेक मित्र और साथियों से पत्र-व्यवहार किया। उपर्युक्त दोनों पुस्तकों से जो पत्र सामने आते हैं, उनमें प्रयोग के साथ उनकी पौत्री मनु बहन का ही नामोल्लेख है। सार्वजनिक भाषण में भी उन्होंने मन बहिन का ही उळख किया। जिन्होंने इस प्रयोग में कोई दोष नहीं देखा, उनके विचार भी प्रायः इसी बात पर आधारित थे अथवा महात्मा गांधी के प्रति अत्यन्त श्रद्धा पर अवलम्बित थे। इसके दो नमने नीचे दिये जाते हैं : (१)श्री अब्दुल गफ्फारखा ने एक बार वहा : "उनमें तो साधारण सन्तुलन भी नहीं। वे यह क्यों नहीं देखते हैं कि मन तो आपके लिए एक महीने की बच्ची के तुल्य है।...."मन आपके साथ एक ही बिछौने पर सोती है, इसमें मैं जरा भी दोष नहीं देखता। मैं समझ नहीं पाता कि एक विचारशील व्यक्ति ऐसी साधारण बात भी क्यों नहीं समझ सकता।" 8-Mahatma Gandhi-The Last Phase p. 591 M ay २-Mahatma Gandhi--The Last Phase p. 587 : The concession was only to feelings and sen timents of those who could not understand his stand and might need time for new ideas to sink into their minds.... S a ne -5.. ३-My days with Gandhi p. 136 ( Letter to a friend name not mentioned ); वही पृ० १५५ (श्री सतीश चन्द्र मुखर्जी के नाम पत्र); Mahatma Gandhi-The Last Phase p. 581 (श्री आचार्य कृपलानी के नाम पत्र); वही पृ० ५८० (हारेस एलेक्जेण्डर के नाम पत्र)। AAYER ४-My days with Gandhi p. 154; Mahatma Gandhi-The Last Phase p. 580........ .. ५-Mahatma Gandhi The Last Phase p. 592 Scanned by CamScanner
SR No.034114
Book TitleShilki Nav Badh
Original Sutra AuthorShreechand Rampuriya
Author
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1961
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size156 MB
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