SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८२ ] मरू-गूर्जर जैन कवि अन्त - इम्म जम्मठाणइ सिरि निहाणइ, पाम नयरहि संसिया। सिरि सकल जिणवर, धण गुणालय, लक्खराय नमसिया जिण बिब सम्गि पयालि महील, जे असासय सासया । • ते नम उपूय उ थुण उ भत्तिहि, सिद्धि मग्ग पभासया ।।३२ इति पूर्व देश चैत्य परिपाटी समाप्ता, श्री जिनबद्धन सूरिभिः कृता लेखन संवत् १४६३ लि. प्रति मे स्थान - अभय जैन ग्रन्थालय । वि० जिनवद्धनसूरि को आचार्य पद सं० १४६१ में मिला था (११२) अज्ञात . (१३१) खर० गुर्वावलिः-गुरुषट्पदी-पद्य १४ में से आवश्यक पद्य जिण सासणि सिंगार मंत्री अर्जुन कुल मंडण । लखमणि देवो कुखी राजहंस दुह दुरिह विहंडण ।। मयगल जिण मा सोहेइ जोवि मुनिवर परिवरिउ । लक्षणतर्फ विचार जांण संयम सिरि वरियउ ।। जिणराज सूरि पट्टहि जयो, जिनवर्धनसूरि अनसरी । चिरुणंद समदाय सम खेमवंत कलिरव करी ॥१०॥ अर्जुन मत्रि मल्हारु माय लखमणि उरि धरियउ । तपि सयमि सहित संयण लक्खण परिहवरियउ ।। आगम ग्रन्थ प्रमाण पमुह विद्या वक्खाण एतहि . सारासार विचार सहल ते पट्टतरि आणहि ।। जिणराजसूरि पटुद्धरण, श्री जिणवर्धन सूरि गुरु ।। समुदाय सहित मंगल करण, भूय जेम जयवंत चिरु । For Private and Personal Use Only
SR No.034112
Book TitleJain Maru Gurjar Kavi Aur Unki Rachnaye
Original Sutra AuthorAgarchand Nahta
Author
PublisherAbhay Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy