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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अज्ञात www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पंद्रहवीं सदी सकल लोक-मनि प्रागंदण, पूरउ सूरउ वर तप तेज । भवीयण जण जिम तम्हि चिर नंदज, वंदउ मन नइ हेज ||८ ( १०७) प्रज्ञात (१२६) सुहगुरु चउपई गा० १६ [ ७९ (१०८) अज्ञात (१२७) श्री गुरुगीतम् गा० ११ प्रादि-गोयम गुरु पय कमल नमेत्रि, समरीय सामिणि सरसति देवि । eिrs घरे वितु निरुमल भाव, गासिउ गुरु मरुया गच्छराय ॥ १ चन्द्रगच्छ भवन्द्रह सूरि, नामि पापि पणासह दूरि । प्रसयन क्रमि समरू निसदीस, पहिला सिरि देवभद्द गणीस || २ मन्त - लहूयां लगय जिणि लोधी दोख, मोहराय रहि दीधी सीख । जस गुण संख न लाभई पारू, श्री रत्नसागरु सरि वखाणि ॥१५ रतनसंघ सूरि नत जे नमई, माहामत्र वषण ऊचरई । गरूयां सतीरथ सविमनि घरू, भव समुद्र सो लीलां तरई ॥ १६ प्रति० अभय For Private and Personal Use Only प्रति० अभय, भादि - समरि सुर भावि सरसति ए, सरसति प्रमी रस वरसती ए । गच्छ रथणायर राउ ए गाइसु ए, गाइसु सहगुरु बहु भत्तिई ए ॥१
SR No.034112
Book TitleJain Maru Gurjar Kavi Aur Unki Rachnaye
Original Sutra AuthorAgarchand Nahta
Author
PublisherAbhay Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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