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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ७४ ] अन्त - पढई गुणई जे संभलड, आबूय गिरि Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मह- गुर्जर जैन कवि चेत्र प्रवाइज हरक गय, सिव सुगह सेरी । तीरथ यात्रा पुण्य ते, पामई मन सुद्धिहिं कहयं सुगुरु जयतिलकसूरि, वाढइ ऋद्धि वृद्धिहि ॥ १७ प्रतिलिपि - अभय जैन ग्रन्थालय (१०२) जयतिलकसूरि शि० (११९) श्री नेमिनाथ रास गा० २१ प्रादि- सासण देवति देवि अंबाई, माई चलणे तनु मन लाइ, ध्याई सुह गुरु पाय । नेमिनाथ गुण मण आदिई, गाइस रासा केरइ छंदिइ, * वंदि यादव राय ॥ १ प्रन्त - श्री जयतिलकसूरि सुपसाई, नितु मन वंछित कवित करांई, जाइ पातक दूरो । मन शुद्धि जे गाई रासउ, भवि भवि साम्ही तम्ह ते दास, श्रासकि जस कपूर ॥२१ प्रतिलिपि - अभय जैन ग्रन्थालय For Private and Personal Use Only (१२०) सोपारा वीनती गा० १९ आदि-पढम जिरणेसर पय पणमेवी, सरसति सामणि चित्ति घरेवी, सेवी सुहगुरु पाय ।
SR No.034112
Book TitleJain Maru Gurjar Kavi Aur Unki Rachnaye
Original Sutra AuthorAgarchand Nahta
Author
PublisherAbhay Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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