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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अज्ञात www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पंद्रहवीं सदी (६७) अज्ञात ( ११३ ) २ श्री जयतिलकसूरि भास गा० ९ आदि - नागनयर मुख मंडणउ, पणमीय पहु पास । गाइसु सहिगुरु ब्रम्हतणां, जिम पूजइ आस ॥ १ तपागच्छ मुनिवर गहगहई, चंद्रकुल राजहंस । श्री जयतिलक सूरि जीणीइं, मुणि जण प्रवयस ॥२. अन्त - चितामणि सुरतरू समउ, कलि कामघट एउ । चितित फल सेवक तणा, देयइ दूसमि सोय ॥८ देशना दुख दच्च उल्हवइ, अभयसिंह सूरि सीसुः । भास पढतां पूजिसि, नितु प्रास जगीस ॥ प्रतिलिपि - अभय जैन ग्रन्थालय (६८) अज्ञात ( ११४) जयतिलकसूरि भास गा० ७ प्रादि - थंभणपुरवर मंडणउ, पणमीय पास जिण सामि । [ ७१ श्री जयतिलक सूरि गाइसो, नव निधि जहनइ नामि ॥१ गुरु मुनिरयण, जीतउ मोहमयण, नयण निहालिसु श्रापणइ ए । सही ए अतििहं उत्साहो, लीजइ सुकृतलाहो, श्री जयतिलकसूरि उबाहो ॥२ अन्त - वचन सुधारसि वरसय, दरसय ए सिरपुर माग । रयणाधर गच्छ पालइए, टालइए पाप तु लाग ॥६ For Private and Personal Use Only
SR No.034112
Book TitleJain Maru Gurjar Kavi Aur Unki Rachnaye
Original Sutra AuthorAgarchand Nahta
Author
PublisherAbhay Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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