________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मरू-गूर्जर जैन कवि
प्रति-मुनि पुण्यविजयजी संग्रह कवि की अन्य रचना दे० ज० गू० क० भा० ३' पृ० १४८१
(६१) पहुराज (ख० जिनोदयसूरि भक्त श्रावक) (१०६) जिनोदयसूरि गुण वणन गा० ६.
स० १४२० लगभग
आदि - किणि गुणि सोववि तवण, सिद्धिहिका भति तुम्ह हो मुणिण ।
संसार फेरि डहणं, दिक्खा बालाणए गहण ॥१॥ अन्त-फल मन वंछिउ होइ जि किवि, तुइ नाम पयासय ।
तुझ नाम सुणि सुगुरु सेर, दारिद पणासइ ।' नाम गहणि तुय तणय सयल, श्रावय उस्सासहि ।
जिण उदयसूरि गणहर रयरगु, सुगुरु पट्टधर उद्धरण पहराज भणइ इम जाणि करि, सयल संघ मंगलु करणु ॥६॥
प्र० ऐ० जैन काव्य संग्रह पृ० ३६-४० . जिनोदय सूरि आचार्यकाल सं० १४१५-१४३१
For Private and Personal Use Only