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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विनय प्रभ चौदहवीं सदी [६] अन्त- इय भवण भूसण दलिय दूसण, सव लक्खण मंडणो । मद मान गंजण मोह भंजण, वाम काम विहंडणो ।। सुर राय रंजणु नाण सण, चरण गुण जय नायको । जिण नाह भवि भवि तात भव मे, बोधिबीजह दायगो ॥२१ प्रतिलिपि - अभय जैन ग्रन्थालय - (९८) विमलाचल आदिनाथ स्तवन गा०१३ .. आदि-मुख संमुखं नयपले देन दीठउ, तहे जाणि मो अन्न न अमीय मीठ 3 जदा नंदि हसामि ने पाल लागउ, तदा देव मह मोह नउ द्रोह भागउ ।।१ अन्त- इम भोलिम सामिनी भगति कीधी, असंख्यात मू पुण्यनी वृत्ति सीधी। न माग जगन्नाथ हउ किंपि बीजउ, विभो आभव देहि मे बोधि बीजं ॥१३ प्रतिलिपि -- अभय जैन ग्रन्थालय (८७) अज्ञात (९९) श्री अंतरीक पार्श्वनाथ स्तवनम् गा० ५ प्रादि--जय जिणेसर जय जिणेसर पास जिण नाह । अंतरीय माहप्पुहिव, एणि कालि तुह देव दीसइ । सिरि सिरपुर वर तिलय, कित्ति सयलि तिहुयणि सलीसइ । नाम मति सुमरंतयह, दुरिउ पणासइ दूरि । For Private and Personal Use Only
SR No.034112
Book TitleJain Maru Gurjar Kavi Aur Unki Rachnaye
Original Sutra AuthorAgarchand Nahta
Author
PublisherAbhay Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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