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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अज्ञात www.kobatirth.org चौदहवीं सदी [ ५१ सम्मेय गिरिहि सुविसाल तीरि, सुपवित्त विमल वर कुंड नीरि । पsिबिंब पड़ पच्चक्ख तित्थ, जिरण प्रतिलिपि - अभय जैन ग्रन्थालय Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६७) अज्ञात (७७) श्री शत्रुञ्ज चंत्य परिवाड़ी गा० २९ प्रादि- सामिय रिसह पसाउ करि, जिम से जि चड़ेवि । चेत्र प्रवाडिहि सवि नमउ, तीरथ भाव घरेवि ॥१ अन्त - नेमि जिरणेसरु पाज मुहि, ललतासरि जिण वीरु । पालीताणइ पास जिरंतु, नमिउ लहि भव तीरु ||२८ एहिजि चेत्य प्रवाड़ि नर, पढई गुणई निसुगति । सिरि सत्रु जय जात्रफलु, ते निश्चई पावंति ॥२६ प्रतिलिपि- - श्रभय जैन ग्रन्थालय (६८) अज्ञात (७८) श्री शत्रुंजय महातीर्थं गीतम् गा० ५ प्रादि- तित्थ माझि सेतुज खित्तु सिद्धि सारो । नितु लगउ जिव भमसि भवजल पारो ॥१ अन्त - प्रभु दरिसणि अमृतकुंडि प्रम्हि न्हाइला | पुरबिल दुकृत कर्म प्राजु घोइयला ||५ प्रतिलिपि - अभय जैन ग्रन्थालय For Private and Personal Use Only
SR No.034112
Book TitleJain Maru Gurjar Kavi Aur Unki Rachnaye
Original Sutra AuthorAgarchand Nahta
Author
PublisherAbhay Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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