SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अज्ञात अन्त www.kobatirth.org चौदहवीं सदी अवर कज्ज सावज्ज सव्वि, वज्जिय कय पुन्नह । नवउ कलसु हउ भणिसु तुम्हि, भवियहु प्रायन्नहु ॥ १ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - दप्पण भद्दासण नंदिवत्त, सिरिवच्छ मच्छ तह कलस जुत्त । वर वद्धमाण सत्थिय विसिट्ठ, जिण पुरओ विहिय इय मंगलट्ठ || १० इय सन्ति जिणंदह उवरि गिरिदह, अमरवद्दहि किउ न्हवण जिम तिव तुम्हिवि म्हावउ जिम सुहु पावहु, 'राम भद्द * पभइ इम ॥ ११ श्रादि-संति नाह२ जम्मि प्रभिसेउ | (५३) अज्ञात (६३) श्री शांतिनाथ कलश गा० ६ * 'पाठान्तर राच भद्द. ' प्रतिलिपि - प्रभय जैन ग्रन्थालय [ ४३ सिहरम्मि मणिहरि विमल बहल रयण रवि कंति सुंदरि । तियसिद सयलिवि मिलिवि कुणहि भत्ति विहिसारु मंदिर || नज्जइ लोयह विहि परह, विहि दरिसणइ निमित्तु परिवारच्छर नट्ट भरु, तहि पयड़हि सुपवित्त ॥ १ प्रन्त - तदणु मग्गिण सह सुवियड्ढ, जिण संति मज्जरण करहिं । विहि जिणंद भवरमि संपइ, तिण सयल सुविहिहि । कलियड चिथ कालि सुह, फलिय संसइ (सिद्धि) 1 पयड़ पथंड पहावधर, लद्ध समग्ग समिद्धि ||६ For Private and Personal Use Only प्रतिलिपि - - अभय जैन ग्रन्थालय
SR No.034112
Book TitleJain Maru Gurjar Kavi Aur Unki Rachnaye
Original Sutra AuthorAgarchand Nahta
Author
PublisherAbhay Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy