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अज्ञात
चौदहवीं सदी
[ ३५ (३६) अज्ञात
(४९) धर्म चच्चरी गा. २० आदि-सुमरेविणु सिरि वीर जिरणु, पणिसु सावय-धम्म
जो आराहइ इक्कमणि, सो नरु पावइ सम्मु ॥१ अन्त-जे पाराहइ गुरु चलण, जिणवर धम्मु करिति । संसारिय सुह अणुभविय, सिवपुरि ते विलसंति ॥२०
प्रतिलिपि-अभय जैन ग्रन्थालय
(४०) अज्ञात
(५०) कृपण नारी संवाद गा० ९ पादि-किवण पभणइ २ निसुणि घर घरणि
महु वित्तउजइ करह धवहि प्रत्थु धरणिहि खणेविणु । खज्जतउ तुट्टिसह करिउ वासु भुक्खी प्रत्थेविण । तंदुल संचह तुस वयह हिंडइ लिल्लिर वेसि
बंभण पहियम पाहुणा दुक्की कहवि म देसि ।।१ अन्त-निसुणि सुन्दरि २ किवणु पभरणेवि ।
सति सीलि तुहु उत्तमिय तुहज देवि अपछर पसिद्धिय । धनु एह करतार तिपरु जेण मज्ज तुहु धरणि दिन्हिय
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