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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रहा था तो हमने उन्हें अपनी खोज से जो नवीन तथा प्रशात सामग्री हमें मिली थी उसका विवरण उन्हें भिजवा दिया। तदन्तर हमारे यहां बीकानेर आकर भी उन्होंने काफी रचनाओं का विवरण तैयार किया, इसी से तीसरा भाग इतना बड़ा बन सका। हमारा शोध-कार्य निरन्तर प्रगति करता रहा, फलतः हमें उपरोक्त तीनों भागों में जिन कवियों और रचनाओं का उल्लेख नहीं हो पाया था, उनकी बहुत बड़ी सामग्री और जानकारी प्राप्त होती गई । अतः यह निर्णय किया गया कि अज्ञात कवियों और उनकी रचनाओं तथा ज्ञात कवियों और उनकी अज्ञात रचनाओं का विवरण देसाई के तीनों भागों की पूर्ति रूप में तैयार किया जाय । उसी के फलस्वरूप कई वर्षों के प्रयत्न से हमने एक बड़ा ग्रन्थ तैयार किया जिनमें ११वीं से १६वीं शताब्दी तक के कवियों और रचनाओं का विवरण इस ग्रन्थ के प्रथम भाग में प्रकाशित किया जा रहा है। यद्यपि इस अवधि को अधिकांश रचनाए छोटी-छोटी हैं पर वे परवर्ती कवियों के लिए प्रेरणा-स्रोत रही हैं और विविध प्रकार की हैं। इसलिए उन छोटी-छोटी रचनाओं का भी विवरण देना आवश्यक समझा गया। १६वीं के बाद तो बड़ी-बड़ी रचनाएं बहुत मिलने लगती हैं और १७वीं शताब्दी तो जैन साहित्य और इतिहास का स्वर्ण युग है, इसलिए उस शताब्दी के कवियों और उनकी रचनाओं का एक स्वतंत्र भाग ही तैयार हो गया है। १८वीं में भी वह क्रम चालू रहा। १९वीं में कुछ मन्दता आयी और २०वीं के पूर्वाद्ध की तो बहुत थोड़े कवि और रचनाए ही ज्ञात हैं। उत्तरार्द्ध से मुद्रण का प्रसार बढ़ता गया और विवरण केवल जैन भण्डारों में प्राप्त हस्तलिखित प्रतियों से ही लिया गया है । प्रस्तुत ग्रन्थ के नाम में भी कुछ परिवर्तन करना आवश्यक समझा गया क्योंकि श्री देसाई ने अपने ग्रन्थ का नाम 'जैन गूर्जर कविप्रो' रखा था पर उसमें केवल गुजरात के कवियों या केवल गुजराती भाषा की रचनाओं का विवरण न होकर मारवाड़-राजस्थान आदि प्रान्तों के For Private and Personal Use Only
SR No.034112
Book TitleJain Maru Gurjar Kavi Aur Unki Rachnaye
Original Sutra AuthorAgarchand Nahta
Author
PublisherAbhay Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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