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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २० ] आदि www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मरू-गूर्जर जैन कवि (२१) अज्ञात ( २८ ) मयणरेहा रास गा० ३६ तां राणी । र रूबह लीला दवंदती, रायमए जिम नेहु करती ॥६॥ समकितु अविचल हियइ धरती, जिण गणहार पय पउम नमंती | चन्द्रजसे कुमर सोहंती, गमइ दीह सा बहु गुणवंती ॥७ ॥ ग्रह जातरि ईसि हसंती, उरि एकावलि हारू वहती । करयलि लीला कमलु करती, कल कंठी जिम किंपि भांति ॥ ८ ॥ परख मणिरहु राम्रो, हा धिगु पेखइ कम्म विवाओ । पेखिउ मयणा मुह रमणीसरू, तो सायरू जिम नहासिउ नरेसरू ॥ ६ ॥ जं नवि वेय पुराण सुणीजइ, जं चिय पामरि लोइ हसीजइ । तपि नरेसर मंडिउ कजू, पेखउ मयण महाभड़ रजू ||१०|| कुलि कमलेहिम बुद्धि करतर, नियगुण वल्ली अग्गि दहंतउ | हाहारत तिहुयणि पावतउ, मणिरहु मयणा मदिरि पत्तउ || ११|| अन्त -- जिणहरि पूजिउ मल्लिनाडु, पवतिणी पण मेई । मिल्हिउ वालह तणउ नेहु, तउ दिक्खा लेई ॥ कुमरह सयलह जिणह वर्याणि पड़िबोहु करती । केवल नार धरेवि मयण, सा सिद्धि पहूती ||५|| सयलह रयणह वयर रयणु, जिव मूल न जाए । तिम जिम सामणि सीलु - रयरणु कवि कहण न माए । वीर जिरणेसर जाम तित्थु, अनुसूरू पयासइ । For Private and Personal Use Only ता चिरूनंदउ एहु चरिउ, अनु मयण महासइ |9|| छ ॥ मयण रेहा रास समाप्तः ॥छ । प्र० हिन्दी अनुशीलन
SR No.034112
Book TitleJain Maru Gurjar Kavi Aur Unki Rachnaye
Original Sutra AuthorAgarchand Nahta
Author
PublisherAbhay Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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