SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनेश्वर सूरि शि० तेरहवीं सदी [ १७ (२३) मंगल गाथा ४ आदि--जो मंगलु सिरि रिसह नाह मरु देविहि दिन्नउ जो मगलु नेमिहि कुमार सिव देवि पवन्न उ जो मगलु पहु पास नाइ वम्मा इवि किज्जइ जो मंगलु च उवीसह जिणह, सुरनाह करहि मेरू वरहि । सो मगलु चउविह सु सघ सणि, मिलि ठवियउ सासण सुरिहि ॥१॥ अन्त- कर उ संति संघस्स सति जुगपवर जिणेसर । सति सयल लोयस्स सति उद्दयह नरेसर ॥ .अइग-एविहि जाइ राइ विससेणइ नदर । चक्क लच्छि परिचत्त जयइ जिण पाव विहंडणु । कमट्ट कर हि धड़ पंच मुह भविय लोय भव भय हरगु । जय जयहि जयहि जय संनियर संतिनाह सिव सह कर गु ।।४ । (२४) गुरु गुण षटपद गा० ८ प्रादि -जिण वल्लह पमुहाणं, सुगुरुणं जो पढ़ेइ वर-कप्पं । मंगल-दीव मि कए, सो पावइ मंगलं विमलं ॥१॥ अन्त–जिण वल्लह जिणदत्तसरि जिणचन्द्र जु जिणवइ तुय सुव्वई आसीस दिति जिरणेसर सूरि भुणिवइ । उयहि जाम जलु रहइ गयणि जाम मह दिणेसरु । ताम पयासिउ सूरि धम्मु जुगपवरु जिरणेसरु ।। For Private and Personal Use Only
SR No.034112
Book TitleJain Maru Gurjar Kavi Aur Unki Rachnaye
Original Sutra AuthorAgarchand Nahta
Author
PublisherAbhay Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy