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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org सिगु तेरहवीं सदी [ ७ ( 5 ) सिरिमा महत्तरा ( स्व ० जिनपति सूरि प्राज्ञानुवर्ती साध्वी ) (८) जिनपति सूरि वधामणा गीत गा० २० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आदि - भासी नयरी वधावणउ, प्रायउ जिणपतिसूरि जिणचदसूरि सीसु प्राइया लो । सं० १२३२ के लगभग वधावणउ वजावि सुगुरु जिनपतिसूरि प्राविया लो। आंकणी । मध्य- हाले महतो इम भणड, संघह मणोरह पूरि । बारहसे बत्तीसा ए, मासि जेठह सुद्धि तीजह । जि० । ८ । सिरिमा महत्तर इम भणइ डव पहु होसइ कांइ ॥ प्रन्त-घरि घरि हुनउ वधामणउ, सरगहि रंजियउ जिणचंद सूरि । प्रासिया नयरि वधावणउ ।। २० ।। (६) प्रासिगु [ अनूपसंस्कृत लायब्र ेरी ] वि० यह रचना साहित्यक भाषा में न हो कर बोलचाल की सरल भाषा में है। प्रति भी १७ वीं शती से पूर्व की प्राप्त नहीं है अतः भाषा में कुछ परिवर्तन हुआ। संभव है । ( पाठ भेद सह प्र० हिन्दी अनुशीलन वर्ष १२ अं० १ ) सिगु (शांति सूरि भक्त ) (९) चन्दनबाला रास गा० ३५ जालोर For Private and Personal Use Only आदि - जिण अभिनवि सरसइ भणए, पुविहि भरह खेत्रि ज वीत । वीर जिरणदह पारणाए, निसुणउ चंदनबाल चरितु । १ ।।
SR No.034112
Book TitleJain Maru Gurjar Kavi Aur Unki Rachnaye
Original Sutra AuthorAgarchand Nahta
Author
PublisherAbhay Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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