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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १५२ ] www.kobatirth.org आदि इति श्री चित्रसंभूति कुलकं समाप्तं प्रति-गुटका पत्र २५३-५७।। पं० १८ अ० २६ वि० इसी प्रति में सीता चौर, श्रेणिक चौ० [ सोमविमल सूरि सुरप्रिय स० श्रुत षटत्रिशिका ( पासचन्द), ब्रह्मचर्य ( पासचन्द ) व नवतत्व वाला है । समाधि कुलक अन्त Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सोमविमल सूरि के दस दृष्टान्त त्रु० है । अन्त-इणि परि दस बोले दोहिलउ नरभव जाणी । सील समकित पालउ अज वलाउ निज प्राणी श्री हेमविमल सरि सुगुरु वचनि मनि श्राणि श्री सोमविमल सूरि जंपर एहवी वाणी । इति दम दृष्टान्त मरू- गूर्जर जैन कवि ( २३० ) इलापुत्र कुलक गा० ६१ For Private and Personal Use Only सं० १६५३ लि० सं० १६५४ से पूर्व संति सुहंकर सोलिम जिणवर, संति जिरणेसर ध्यावउजी । पुहवि प्रगट नर अति अचरिज कर, इलापुत्र गुण गावउजी ॥ १ ए भव नाटक नी परि बुझइ, जे हुई भवियण प्राणीजी । साधु सुसंगति सयम सूद, मुझ इन विषय नबिनांणी जी । (आ.) - आप तरीनइ पांचइ तारचा, अविगति पंथ लगाया । - निरमल चित्त निरंजन नितनित, विनइ भगति गुण गाया रे ॥६
SR No.034112
Book TitleJain Maru Gurjar Kavi Aur Unki Rachnaye
Original Sutra AuthorAgarchand Nahta
Author
PublisherAbhay Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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