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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १२६ ] www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मरु-गुर्जर जैन कवि ( १७२ ) धनसार ( उपकेशगच्छ ) ( २०२ ) उपकेश गच्छ ऊएसा रास – गा० १२८ स ० १५३३ विजयदशमी, उपकेशपुर आदि - पणमवि पास जिनिंद पाय, सरसति वयण दयउ माय । कोई कविय करण हूं मंडउ, सुह सुहगुरु ना पाय न छंडउ ॥ १ उएस वंसनइ गच्छ जु किद्ध, उवएस नयरिहि सोजि प्रसिद्ध । पासनाह जिणवर संतानिहि, पढम नाम हुआ इणि अहिनाणिहि ||२ अन्त-संवत पनर तेत्रीस आसो माम सुदी ए रासकिय सजगोस । दसमीय सुगुरु वारिहि ऊजलीय । उवएस पुरवर राम, पढतां पजइ प्रास | श्रावर अंगि उल्हास, अहनिसि ऊपजइ अति मन रली ए ।।२७ नयर उएसह ठाउ, वीर जिरणेसर राउ । नितु नितु करइ पसाउ, जिण गुण श्रमिय रसायण तोलियइ ए । भबियण करउ सभाउ, उवएस माह (त) णउ उपाउ । सुह संपति नउ दाउ, पाठक धनसार इम बोलियइ ए ।। १२८ श्री उपकेश गच्छ ऊएसा रास समाप्त इति । संवत १६२५ वर्षं श्राषाढासितष्टम्यां दिने राजळदेसरस्थं वा० देव सुंदरं लिलेखि । सच्चरित्र स्मरणार्थं । पत्र ६ [ बीच के २ पत्र कुछ चिपकने से अक्षर अस्पष्ट ] राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर For Private and Personal Use Only
SR No.034112
Book TitleJain Maru Gurjar Kavi Aur Unki Rachnaye
Original Sutra AuthorAgarchand Nahta
Author
PublisherAbhay Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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