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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अज्ञात सोलहवीं सदी ( १६५) कल्याणचंद्र ( १९४) कीर्तिरत्न सूरि वीवाहलउ गा० ५४ ( कीर्तिरत्न सूरि शि० ) सं० १५२५ लग० प्रादि-भक्ति भर भरियउ हरिस सिरि वरियउ, पणमिय संति करु संतिभाह । सनाह ॥ १ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सारदा सामिणि हंसला गामिणी, झाणिहि निय हिय करि नाण लोयण तणउ अम्ह दातार गुरु, अनय गुणवन्त [ ११९ सिरिमउड़ मणि । तेण सिरि कित्तिरयण सूरीसरे, हिव कहिसु हउ चरिय घरि भत्ति मणि ॥ २ अन्त - एह विवाहलउ भणइ मावि, तसु मणो वंछित देइ इंदो । भतु सिरि कित्तिरयण सूरि पाय. सीसतसु कहइ कल्लाण चंदो स्थान - जैसलमेर भंडार । For Private and Personal Use Only ॥५४ प्रतिलिपि - श्रभय जैन ग्रंथालय । ( १९५) श्री कीतिरत्नसूरि चउपइ गा० १८ आदि - सरसति सरस वयण दे देवि, जिम गुरु गुण बोलिउ संखेवि । पीजद प्रमिय रसायण बिंदु, तहवि सरीरिह हुइ गुण वृंद ॥ १ प्रन्त-- श्री कीर्तिरतन सूरि चटप, प्रहऊंठी जे निश्चल थई भगद्द गुणइ तिहि काज सरंति, 'कल्याणचंद्र' गणि भगति भरणंति ॥ १८५
SR No.034112
Book TitleJain Maru Gurjar Kavi Aur Unki Rachnaye
Original Sutra AuthorAgarchand Nahta
Author
PublisherAbhay Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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