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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org जयमूर्ति गणि पंद्रहवीं सदी हव कर जोड़ीय वीनवउ, दीन वयण संभारि । क्षमा करेज्यो भवियण, कवियण ए आचारु ||३० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इति मातृका फाग समाप्त माई अरथ जे बूझइ, सुझइ ईण संसारि । पाठ दिश्या सवि दहिसिहं ए, लहसिहं सुख नर नारि ॥३१ (१५१) जयमूर्ति गणि (१८०) मातृका गा० ६४ [ ११ प्रति० अभय० आदि-आदि प्रणव समरू सविचार, बीजी माया त्रिभुवनि सार । श्रीमंत भणी जपु निशि दीस, अरिहंत पय नितु नाम सीस ॥ १ For Private and Personal Use Only गणहर गरुउ गोयम सामि, अखय निधि हुइ तेहनई नामि । नवनिधान तहं चऊदय रयण, जे नितु समरइ गौतम वय वण ॥२ अन्त - क्षिरता दीस सुरासुर इंद्र, हरिहर ब्रह्मा रवि नइ चंद्र । उत्पतिं विगम करह सवि जंतु, अक्षर एकु अछइ अरिहंतु ||६३ गौतम माइय अविगत हुई, अनुभवि जयमूरति गणि कही । लोकालोकि एहनु व्यापु, यति जाणइ जउ जोइ आपू ||६४ • प्रति• अभय०
SR No.034112
Book TitleJain Maru Gurjar Kavi Aur Unki Rachnaye
Original Sutra AuthorAgarchand Nahta
Author
PublisherAbhay Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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