SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 102
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भैरइवास पन्द्रहवीं सदी [ ८५ (११५) देवदत्त ख० (बहरा ऊदा सुत) (१३४) जिनभद्र सूरि धूवउ गा०२ सिसि गच्छ मंडण मयण रिण, खंडण धोणग नंदण ए । मिलि सुदरसण अमृत वरिसणु, वाणी सुललितु ए ।। क्रोध मान माया लोभ निवारणु, धारणु संजमु निर्मलुप्रा । सयल शास्त्र व्याकरण वखाणण, संघ सभापति उधरणाउ ।" असरण सरण सूरि मत समरण, करण कवित मतोए। वादिय पंचायण विदुर विचक्षण, छत्तीम गुणालंकलु ए॥ जिनराज सूरि पाट चिंतामण, भद्दसूरि गुरु सुहकरु ए। भरणं देवदत्त वहरा ऊदा सुत, सहि छाहड़ सुहकरणा हो ॥२ प्रति० अभय (११६) भैरइदास (१३५) जिनभद्र सूरि गीत गा० २ मनमथ दहन मलिनि मन वर्जित, तप तेज दिनुकरू ए। महिम उदधि गरुया गच्छ गणधर, सकल कलानिधि ए। वादि तरकि विद्या गज केसरि, जोग जुगति यति संपुन्नु । प्रापं वसिकरण सुखनिधि, संघ सभापति मंडरा ॥१ चतुर्दिश प्रगट अमृत रस पूरित, ज्ञानि गे रेखम पच महावृत मेरू धुरंधर, संजम सुगृहितु ए । For Private and Personal Use Only
SR No.034112
Book TitleJain Maru Gurjar Kavi Aur Unki Rachnaye
Original Sutra AuthorAgarchand Nahta
Author
PublisherAbhay Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy