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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कल्पसूत्रं कल्पलता व्या० ७ ॥ ९८६ ॥ *6*667-6 www.kobatirth.org संच्छरे काले गच्छ ॥ १८५ ॥ २१ ॥ मुणिसुवयस्स णं अरहओ कालगयस्स इक्कास वाससय सहस्साइं चउरासीइं च वाससहस्साइं नव वाससयाई विइकंताई, दसमस्सय वाससयस्स अयं असीइमे संवच्छरे काले गच्छइ ॥ १८६ ॥ २० ॥ महिस्स णं अरहओ जाव सवदुक्खप्पहीणस्स पन्नट्ठि वाससय सहस्साइं चउरासीइं च वाससहस्साई नव वाससयाई विकताई, दसमस्त य वाससयस्स अयं असीइमे संवच्छरे काले गच्छइ ॥ १८७ ॥ १९ ॥ अस्स णं अरहओ जाव सवदुक्खप्पहीणस्स एगे वासकोडिसहस्से विइकते, सेसं जहा मल्लिस्स, तं च एयं पंचसट्ठि लक्खा चउरासीइं सहस्सा विइक्कंता, तंमि समए महावीरो निधुओ, तओ पर नव वाससया विइकंता दसमस्त य वासस्यस्स अयं असीइमे संवच्छरे काले गच्छइ । एवं अग्गओ जाव सेयंसो ताव दट्ठवं ॥ १८८ ॥ १८ ॥ कुंथुस्स णं अरहओ जाव सवदुक्खप्पहीणस्स एगे चउभागपलिओवमे विइकंते पंचसट्ठि वाससयसहस्सा, जहा मल्ल ॥ १८९ ॥ १७ ॥ संतिस्स णं अरहओ जाव सबदुक्खप्पहीणस्स एगे चउभा सं For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तीर्थङ्कराणां अन्तरकालः ।। १८६ ।।
SR No.034110
Book TitleKalpasutra Kalpalati Tika
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorSamaysundar Gani,
PublisherJinduttasuri Gyanbhandar
Publication Year1939
Total Pages628
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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