SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 271
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कल्पसूत्रं कल्पलता व्या०५ ॥११६॥ इति गम्यम् , "समाणत्ति" सन्तो, पुनः कीदृशौ ?। आचांती-शुद्धोदकेन कृतशोची, चोक्षी-लेपसिकथाद्यप-IKI भोजननयनेन, अत एव परमशुचिभूती तान् मित्रादीन् प्रति एवं अवादिष्टाम् । विच्छित्ति___ अन पुनः अन्धान्तरानुसारेण भोजनविच्छित्तिं पाह वर्णन मांज्यउ उत्तंग तोरणमांडवउ, तुरतनवउ बेसवानउ आंगणड तेतउ नीलरतनतणउ । सखरामांज्या आसण, बैसतां किसी विमासण । आगई मुंकी सोनानी आडणी, ते किम जायइ छोडणी। उपरि सोनाना थाल, अत्यंतवणुं बिसाल । विचमे चोसह वाटकी, लगार नही जातिकाटकी । गंगोदक दीवा, थालक चोलानइ हाथ पवित्र कीधा । सगली पांति बैठी, तितरह पीसणहारी पइठी। ते केहवी ? सोल शंगार सज्या, वीजा काम त्यज्या। हाथनी रूडी, बिहुंवाहेखलकइ चूडी । लघलाघवी कला, मन कीधा मोकला। चित्तनी उदार अतिघणी दातार । दउलती हाथ, परमेसर देजे तेहनो साथ । धसमसती आवी, सगलारइ मनभावी । पहिलं फल हलि प्रीसइ, सगलारा हीपां हीसइ। पाका आधानी कातली, ते बूराखंडसुं भरी अनइ वली पातली । पाका केला, ते वली खांडसुं कीधा भेला । सखराकरणा, तेवली पीला बरणा। नीली नारंगी रंगइ दीसती सुरंगी। नीकोली रायणि, प्रीसी भाइणी । दाडिमनी कली, खातां पूजइ रत्नी। निमजानेइ |अखोड, खाता पूजइ कोड । द्राखने विदाम, केई कागदी केई माम । सिलेमानी खारिकनह खजुर, ते परीस्या भरपूर नालेरनी गिरी, मालवी गुलसुंभरी। नींबू खाटा नइ मीठा, एहवा तो कदे न दीठा । चारोली नइ XXXOXOXXXXXXXX For Private and Personal Use Only
SR No.034110
Book TitleKalpasutra Kalpalati Tika
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorSamaysundar Gani,
PublisherJinduttasuri Gyanbhandar
Publication Year1939
Total Pages628
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy