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________________ नानक की रोटियां गुरु नानक बहुत लम्बी यात्रायें किया करते थे। एक दिन यात्रा के दौरान वे एक गरीब दलित बढ़ई लालो के घर में विश्राम के लिए रुके। उन्हें लालो का व्यवहार पसंद आया और वे दो हफ्तों के लिए उसके घर में ठहर गए। यह देखकर गाँव के लोग कानाफूसी करने लगे - "नानक ऊंची जाति के हैं, उन्हें नीची जाति के व्यक्ति के साथ नहीं रहना चाहिए। यह उचित नहीं है।" एक दिन उस गाँव के एक धनी जमींदार मलिक ने बड़े भोज का आयोजन किया और उसमें सभी जातियों के लोगों को खाने पर बुलाया। गुरु नानक का एक ब्राह्मण मित्र उनके पास आया और उन्हें भोज के बारे में बताया। उसने नानक से भोज में चलने का आग्रह किया। लेकिन नानक जातिव्यवस्था में विश्वास नहीं करते थे इसलिए उन्होंने भोज में जाने को मना कर दिया। उनकी दृष्टि में सभी मानव समान थे। वे बोले - "मैं तो किसी भी जाति में नहीं आता. मझे क्यों आमंत्रित किया गया है?" ब्राह्मण ने कहा - "ओह, अब मैं समझा कि लोग आपको अधर्मी क्यों कहते हैं। लेकिन यदि आप भोज में नहीं जायेंगे तो मलिक ज़मींदार को अच्छा नहीं लगेगा।" - यह कहकर वह चला गया। नानक भोज में नहीं गए। बाद में मलिक ने उनसे मिलने पर पूछा - "आपने मेरे भोज के निमंत्रण को किसलिए ठकरा दिया?" नानक बोले - "मुझे स्वादिष्ट भोजन की कोई लालसा नहीं है, यदि तुम्हारे भोज में मेरे न आने के कारण तुम्हें दुःख पहुँचा है तो मैं तुम्हारे घर में भोजन करूंगा"। लेकिन मलिक फ़िर भी खुश न हुआ। उसने नानक की जातिव्यवस्था न मानने और दलित लालो के घर में रुकने की निंदा की। नानक शांत खड़े यह सुन रहे थे। उनहोंने मलिक से कहा - "अपने भोज में यदि कुछ बच गया हो तो ले आओ, मैं उसे खाने के लिए तैयार हूँ।" नानक ने लालो से भी कहा कि वह अपने घर से कुछ खाने के लिए ले आए। नानक ने मलिक और लालो के द्वारा लगाई गयी थाली से एक-एक रोटी उठा ली। उन्होंने लालो की रोटी को अपनी मुट्ठी में भींचकर दबाया। उनकी मुट्ठी से दूध की धार बह निकली। 89
SR No.034108
Book TitleZen Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNishant Mishr
PublisherNishant Mishr
Publication Year
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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