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________________ जिम्मेदारी ज़ेन गुरु रयोकान को उसकी बहन ने कोई ज़रूरी बात करने के लिए अपने घर आने का निमंत्रण दिया। वहां पहुंचने पर रयोकान की बहन ने उससे कहा - "अपने भांजे को कुछ समझाओ। वह कोई काम नहीं करता। अपने पिता के धन को वह मौज-मस्ती में उड़ा देगा। केवल आप ही उसे राह पर ला सकते हो।" रयोकान अपने भांजे से मिले। वह भी अपने मामा से मिलकर बहुत प्रसन्न था। रयोकान के ज़ेन मार्ग अपनाने से पहले दोनों ने बहुत समय साथ में गुज़ारा था। भांजा यह समझ गया था कि रयोकान उसके पास क्यों आए थे। उसे यह आशंका थी कि रयोकान उसकी आदतों के कारण उसे अच्छी डांट पिलायेंगे। लेकिन रयोकान ने उसे कुछ भी न कहा। अगली सुबह जब उनके वापस जाने का समय हो गया तब वे अपने भांजे से बोले - "क्या तुम मेरी जूतियों के बंद बाँधने में मेरी मदद करोगे? मुझसे अब झुका नहीं जाता और मेरे हाथ भी कांपने लगे हैं।" भांजे ने बहुत खुशी-खुशी रयोकान की जूतियों के बंद बाँध दिए। "शुक्रिया" - रयोकान ने कहा - "दिन-प्रतिदिन आदमी बूढा और कमज़ोर होता जाता है। तुम्हें याद है मैं कभी कितना बलशाली और कठोर हुआ करता था?" "हाँ" - भांजे ने कुछ सोचते हुए कहा - "अब आप बहुत बदल गए हैं।" भांजे के भीतर कुछ जाग रहा था। उसे अनायास यह लगने लगा कि उसके रिश्तेदार, उसकी माँ, और उसके सभी शुभचिंतक लोग अब बुजुर्ग हो गए थे। उन सभी ने उसकी बहुत देखभाल की थी और अब उनकी देखभाल करने की जिम्मेदारी उसकी थी। उस दिन से उसने सारी बुरी आदतें छोड़ दी और सबके साथ-साथ अपने भले के लिए काम करने लगा। 84
SR No.034108
Book TitleZen Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNishant Mishr
PublisherNishant Mishr
Publication Year
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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