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________________ अपयश बुद्ध ने अपने शिष्यों को एक दिन यह कथा सुनाई : श्रावस्ती में एक धनी स्त्री रहती थी जिसका नाम विदेहिका था। वह अपने शांत और सौम्य व्यवहार के कारण दूर-दूर तक प्रसिद्द थी। सब लोग कहते थे कि उसके समान मद् व्यवहार वाली दूसरी स्त्री श्रावस्ती में नहीं थी। वेदेहिका के घर में एक नौकर था जिसका नाम काली था। काली अपने काम और आचरण में बहुत कुशल और वफादार था। एक दिन काली ने सोचा - "सभी लोग कहते हैं कि मेरी मालकिन बहुत शांत स्वभाव वाली है और उसे क्रोध कभी नहीं आता, यह कैसे सम्भव है?! शायद मैं अपने काम में इतना अच्छा हूँ इसलिए वह मुझ पर कभी क्रोधित नहीं हुई। मुझे यह पता लगाना होगा कि वह क्रोधित हो सकती है या नहीं।" अगले दिन काली काम पर कुछ देरी से आया। विदेहिका ने जब उससे विलंब से आने के बारे में पूछा तो वह बोला - "कोई ख़ास बात नहीं।" विदेहिका ने कुछ कहा तो नहीं पर उसे काली का उत्तर अच्छा नहीं लगा। दूसरे दिन काली थोड़ा और देर से आया। विदेहिका ने फ़िर उससे देरी से आने का कारण पूछा। काली ने फ़िर से जवाब दिया - "कोई ख़ास बात नहीं।" यह सुनकर विदेहिका बहुत नाराज़ हो गई लेकिन वह चुप रही। तीसरे दिन काली और भी अधिक देरी से आया। विदेहिका के कारण पूछने पर उसने फ़िर से कहा - "कोई ख़ास बात नहीं।" इस बार विदेहिका ने अपना पारा खो दिया और काली पर चिल्लाने लगी। काली हंसने लगा तो विदेहिका ने दरवाजे के पास रखे डंडे से उसके सर पर प्रहार किया। काली के सर से खून बहने लगा और वह घर के बाहर भागा। घर के भीतर से विदेहिका के चिल्लाने की आवाज़ सुनकर बाहर भीड़ जमा हो गई थी। काली ने बाहर सब लोगों को बताया की विदेहिका ने उसे किस प्रकार डंडे से मारा। यह बात आग की तरह फैल गई और विदेहिका की ख्याति मिट्टी में मिल गई। यह कथा सुनाने के बाद बुद्ध ने अपने शिष्यों से कहा - "विदेहिका की भाँती तुम सब भी बहुत शांत, विनम्र, और भद्र व्यक्ति के रूप में जाने जाते हो। लेकिन यदि कोई तुम्हारी भी काली की भाँती परीक्षा ले तो तुम क्या करोगे? यदि लोग तुम्हें भोजन, वस्त्र और उपयोग की वस्तुएं न दें तो तुम उनके प्रति कैसा आचरण करोगे? क्या तुम उन परिस्थितियों में भी शांत और विनम्र रह पाओगे? हर परिस्थितियों में शांत, संयमी, और विनम्र रहना ही सत्य के मार्ग पर चलना है।" 54
SR No.034108
Book TitleZen Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNishant Mishr
PublisherNishant Mishr
Publication Year
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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