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________________ सातवाँ घड़ा बहत पुरानी बात है। उत्तरी भारत में एक व्यापारी रहता था जिसकी पत्नी की मृत्यु हो चुकी थी। पहाडी पर स्थित अपने घर से वह अकेला मैदान की और नीचे शहर में जाता था और चीज़ों की खरीद-फरोख्त करता था। एक दिन उसने मार्ग में मन-बहलाव के लिए किसी और जगह जाने का सोचा और वह एक पहाड़ पर वादियों और जंगलों का नज़ारा लेने चला गया। कड़ी दोपहरी में उसे नींद आने लगी और उसने सुस्ताने के लिए कोई जगह ढूंढनी चाही। उसे एक छोटी सी गुफा मिल गई और वह उसमें अंधेरे में भीतर जाकर सो गया। जागने पर उसने पाया कि उस गुफा में कुछ था... गुफा के भीतर उसे मिटटी का एक बड़ा घडा मिला। वहां कुछ और घडे भी रखे थे... कुल सात घडे। व्यापारी के मन में आश्चर्य भी था और भय भी। कहीं से कोई भी आवाज़ नहीं आ रही थी। डरते-डरते उसने एक घडे का ढक्कन खोला। घडे में सोने के सिक्के भरे हए थे। एक-एक करके उसने पाँच घडे खोलकर देखे। सभी में सोने के सिक्के थे। छटवें घडे में उसे एक पुराना कागज़ का टुकडा भी मिला। कागज़ पर लिखा था - "इन सिक्कों को ढूंढने वाले, सावधान हो जाओ! ये सभी घडे तुम्हारे हैं लेकिन इनपर एक शाप है। इनको ले जाने वाला उस शाप से कभी मुक्त नहीं हो पायेगा!" उत्सुकता में बड़ी शक्ति है, पर लालच उससे भी शक्तिवान है। इतना धन पाकर व्यापारी ने समय नहीं गंवाया और वह एक बैलगाडी का इंतजाम करके सभी घडों को अपने घर लेकर जाने लगा। घडों को उठाना बेहद मश्किल था। एक बार में वह दो घडे ही ले जा सकता था। रात के अंधेरे में उसने छः घडे अपने घर ले जाकर रख दिए। सातवाँ घडा ले जाने में उसे कोई ख़ास दिक्कत नहीं हुई क्योंकि इस बार बोझा कुछ कम था। फ़िर उसने सोचा कि सारे सिक्कों की गिनती कर ली जाए। एक-एक करके उसने छः घडो में मौजद सिक्कों कि गिनती कर ली। सातवें घडे को खोलने पर उसने पाया कि वह आधा ही भरा हुआ था। व्यापारी बहुत दुखी हो गया। शाप की बात कहने वाले कागज़ को वह बेकार समझकर फेंक चुका था और उसे वह बात अब याद भी नहीं थी। व्यापारी के मन में अब और अधिक लालच आ गया था। उसने सोचा कि कैसे भी करके सातवें घडे को पूरा भरना है। उसने और अधिक धन कमाने के लिए एडी-चोटी का ज़ोर लगा दिया। लेकिन सातवें घडे में जितना भी धन डालो, वह हमेशा आधा खाली रहता था। व्यापारी कुछ साल और जिया, लेकिन अपने धन का उसे कुछ भी आनंद नहीं मिला क्योंकि वह उसके लिए कभी भी पर्याप्त नहीं था। 52
SR No.034108
Book TitleZen Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNishant Mishr
PublisherNishant Mishr
Publication Year
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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