SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ "एक घंटे बाद उसने मुझे आईने के सामने रख दिया और मुझसे बोला - "खुद को देखो"। "मैंने खुद को आईने में देखा... देखकर कहा - "यह मैं नहीं हूँ! मैं ये कैसे हो सकता हूँ! ये तो बहुत सुंदर है। मैं सुंदर हूँ!?" "उसने धीरे से कहा - "मैं चाहता हूँ कि तुम ये हमेशा याद रखो कि... मुझे पता है की तुम्हें तोड़ने-मोड़ने, काटने-जलने में तुम्हें दर्द होता है, लेकिन यदि मैंने तुम्हें अकेले छोड़ दिया होता तो तुम पड़े-पड़े सूख गए होते। तुम्हें मैंने चाक पर इतना घुमाया कि तुम बेसुध हो गए, लेकिन मैं यह नहीं करता तो तुम बिखर जाते!" "मुझे पता है कि तुम्हें भटटी के भीतर कैसा लगा होगा। लेकिन यदि मैंने तुम्हें वहां नहीं रखा होता तो तुम चटख जाते। तुम्हें मैंने पैनी सुई जैसे दातों वाले ब्रश से झाडा और तुमपर दम घोंटने वाले बदबूदार रंग लगाये, लेकिन यदि मैं ऐसा नहीं करता तो तुममें कठोरता नहीं आती, तुम्हारे जीवन में कोई भी रंग नहीं होता"। "और यदि मैंने तुम्हें दूसरी बार भट्टी में नही रखा होता तो तुम्हारी उम्र लम्बी नहीं होती। अब तुम पूरी तरह तैयार हो गए हो। तुम्हें बनाने से पहले मैंने तुम्हारी जो छवि मैंने अपने मन में देखी थी अब तुम वही बन गए हो"| 39
SR No.034108
Book TitleZen Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNishant Mishr
PublisherNishant Mishr
Publication Year
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy