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________________ लकड़ी का बक्सा एक किसान इतना बूढा हो चुका था कि उससे खेत में काम करते नहीं बनता था। हर दिन वह धीरे-धीरे चलकर खेत को जाता और एक पेड़ की छाँव में बैठा रहता। उसका बेटा खेत में काम करते समय अपने पिता को पेड़ के नीचे सुस्ताते हुए देखता था और सोचता था - "अब उनसे कुछ भी काम नहीं करते बनता। अब उनकी कोई ज़रूरत नहीं है।" एक दिन बेटा इस सबसे इतना खिन्न हो गया कि उसने लकड़ी का एक बड़ा ताबूत जैसा बक्सा बनाया। उसे खींचकर वह खेत के पास स्थित पेड़ तक ले कर गया। उसने अपने पिता से बक्से के भीतर बैठने को कहा। पिता चुपचाप भीतर बैठ गया। लड़का फ़िर बक्से को जैसे-तैसे खींचकर पास ही एक पहाड़ी की चोटी तक ले कर गया। वह बक्से को वहां से धकेलने वाला ही था कि पिता ने बक्से के भीतर से कुछ कहने के लिए ठकठकाया। लड़के ने बक्सा खोला। पिता भीतर शान्ति से बैठा हुआ था। पिता ने ऊपर देखकर बेटे से कहा - "मुझे मालूम है कि तुम मुझे यहाँ से नीचे फेंकने वाले हो। इससे पहले कि तुम यह करो, मैं तुम्हें एक बात कहना चाहता हूँ।" "क्या?" - लड़के ने पूछा। "मुझे तुम फेंक दो लेकिन इस बक्से को संभालकर रख लो। तुम्हारे बच्चों को आगे चलकर काम आएगा।" 24
SR No.034108
Book TitleZen Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNishant Mishr
PublisherNishant Mishr
Publication Year
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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