SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 208
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अन्याय के आगे न झुकना लोकमान्य बालगंगाधर तिलक बचपन से ही सच्चाई पर अडिग रहते थे। वे स्वयं कठोर अनुशासन का पालन करते थे परन्तु कभी भी किसी की चुगली नहीं करते थे। एक दिन उनकी कक्षा के कुछ छात्रों ने मूंगफली खा कर छिलके फर्श पर बिखेर दिए। उन दिनों अध्यापक बेहद कठोर हुआ करते थे। अध्यापक ने पूछा तो किसी भी छात्र ने अपनी गलती नहीं स्वीकारी। इसपर अध्यापक ने सारी कक्षा को दण्डित करने का निश्चय किया। उन्होंने प्रत्येक लड़के से कहा - "हाथ आगे बढाओ" - और हथेली पर तडातड बेंत जड़ दीं। जब तिलक की बारी आई तो उन्होंने अपना हाथ आगे नहीं बढ़ाया। तिलक ने अपने हाथ बगल में दबा लिए और बोले - "मैंने मूंगफली नहीं खाई है इसलिए बेंत भी नहीं खाऊँगा।" अध्यापक ने कहा - "तो तुम सच-सच बताओ कि मूंगफली किसने खाई है?" "मैं किसी का नाम नहीं बताऊँगा और बेंत भी नहीं खाऊँगा" - तिलक ने कहा। तिलक के इस उत्तर के फलस्वरूप उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया लेकिन उन्होंने बिना किसी अपराध के दंड पाना स्वीकार नहीं किया। तिलक आजीवन अन्याय का विरोध डट के करते रहे। इसके लिए उन्हें तरह-तरह के कष्ट उठाने पड़े और जेल भी जाना पड़ा लेकिन उन्होंने अन्याय के आगे कभी सर नहीं झुकाया। 207
SR No.034108
Book TitleZen Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNishant Mishr
PublisherNishant Mishr
Publication Year
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy